जीभा में वो धार है , सही चले तो प्यार,
उलट चली ये जब कभी, करती फिर संहार
करती फिर संहार, कटे सब भाई-भाई
बुझे न फिर भी प्यास, लुटे सब पायी-पायी |
कहे 'हर्ष' कविराय, करो बात पसंदीदा
मीठे वचन निकाल, जब चलाओ तुम जीभा |
__________हर्ष महाजन
उलट चली ये जब कभी, करती फिर संहार
करती फिर संहार, कटे सब भाई-भाई
बुझे न फिर भी प्यास, लुटे सब पायी-पायी |
कहे 'हर्ष' कविराय, करो बात पसंदीदा
मीठे वचन निकाल, जब चलाओ तुम जीभा |
__________हर्ष महाजन
वाह हर्ष जी...नया स्टाइल...
ReplyDeleteShukriyaa Vidya ji.....
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