Sunday, August 26, 2012

मैं तनहा हूँ तनहायी में तसव्वुर यूँ सताता है

मैं तनहा हूँ तनहायी में तसव्वुर खूब सताता है,
वफ़ा जब बे-वफ़ा होती सफ़र सब कुछ बताता है ।

तलब इतनी मुहब्बत की मेरे दिल पे यूँ काबिज़ है,  
मेरा दीवाना-पन उसको मेरा सब कुछ लुटाता है ।।

ज्यूँ  होती शाम फिर उसकी जुदायी याद आती हैं,
ये ज़ख्मीं दिल खरा इतना सब कुछ भूल जाता  है।

न जाने कौन सी रुत में वफायें लौट आती हैं,
उसी की आस में ये दिल ये राहें खूब सजाता है ।

मैं आईना हूँ जो टूटेगा मुझे मालूम है इतना, 
मगर दिल हमसफ़र अपना उसे ही खूब दिखाता है ।


_______________हर्ष महाजन ।






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मैं तनहा हूँ तनहायी में तसव्वुर खूब सताता है,
वफ़ा जब बे-वफ़ा होती सफ़र सब कुछ बताता है ।
तलब इतनी मुहब्बत की मेरे दिल पे यूँ काबिज़ है,
मेरा दीवाना-पन उसको मेरा सब कुछ लुटाता है ।।

_______________हर्ष महाजन ।



MaiN Tanha huN tanhayi me tasawwur khoob satata hai
wafa jyuN chhod jaati sang safar sab kuch batata hai.
Talab itni muhabbat ki mire dil pe yuN kaabiz hai
Mera dewana-pan usko mera sab kuch lutaata hai.

___________________ Harash Mahajan.

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