Thursday, August 2, 2012

ज़ख्म दर ज़ख्म अपने अहसास इन शेरों में प्रवेश करता हूँ

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ज़ख्म दर ज़ख्म अपने अहसास इन शेरों में प्रवेश करता हूँ
बस दिल के कुछ टुकड़े हैं जो रोज़ किश्तों में पेश करता हूँ ।

_______________________हर्ष महाजन ।

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