...
ग़ज़ल उठी जो दिल से फिर उन्ही पे ख़त्म हुई ,
मुसलसल मेरे बहे अश्क.......उनकी रस्म हुई |
खुदा भी जाने है अश्कों ......की जुबां होती कहाँ ,
ये पीड़ा गुज़री हद से पर.......कहे वो खत्म हुई |
प्यार किस्मत है, मेहरबाँ....सभी पे होता कहाँ,
किसी को ज़िन्दगी मिली...किसी की भस्म हुई |
मैंने दिल से तो नज़्म....गीत ग़ज़ल बहुत कहे,
मगर कसम दी ग़ज़ल गीत उन्ही की नज़्म हुई |
शराब पीता सुबह-ओ-शाम....... गम कैसे कटे,
न जाने इंतकाम कैसा..........कहानी ख़त्म हुई |
___________________हर्ष महाजन
ग़ज़ल उठी जो दिल से फिर उन्ही पे ख़त्म हुई ,
मुसलसल मेरे बहे अश्क.......उनकी रस्म हुई |
खुदा भी जाने है अश्कों ......की जुबां होती कहाँ ,
ये पीड़ा गुज़री हद से पर.......कहे वो खत्म हुई |
प्यार किस्मत है, मेहरबाँ....सभी पे होता कहाँ,
किसी को ज़िन्दगी मिली...किसी की भस्म हुई |
मैंने दिल से तो नज़्म....गीत ग़ज़ल बहुत कहे,
मगर कसम दी ग़ज़ल गीत उन्ही की नज़्म हुई |
शराब पीता सुबह-ओ-शाम....... गम कैसे कटे,
न जाने इंतकाम कैसा..........कहानी ख़त्म हुई |
___________________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment