Sunday, September 15, 2013

ज़िन्दगी कुर्बतों की चाहत में उनके छल से भी हम बहलते र


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ज़िन्दगी कुर्बतों की चाहत में उनके छल से भी हम बहलते रहे,
तंज़ खंज़र की तरह सहते हुए.... आह भर-भर वहीँ टहलते रहे |
हम न होते तो होता और कोई जिनके चर्चे शहर में चलते वहाँ,
फिर भी किस्मत की डोर थामे हुए लौटे आखिर थे उनसे छलते हुए |

_____________________हर्ष महाजन

Qurbat=closeness

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