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भूल कहाँ अब सकता कोई, तारीखें हिन्दुस्तान
की,
सुभाष भगत आज़ाद ने खायी,
चोटें जब तूफ़ान की |
लुटा था इक बस सोने
जैसा, शहर शून्य नादानी से,
बटी सरहदें लुटे थे चश्में रुकी वो आग इंतकाम की |
________________________हर्ष महाजन
बटी सरहदें लुटे थे चश्में रुकी वो आग इंतकाम की |
________________________हर्ष महाजन
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