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बता दे किश्तें कितनी बाक़ी हैं चाहत में,
उमर तो बीत चली भरते-भरते राहत में |
मुझे तू मात दे दे, मेरे गुनाहों की सनम,
मगर तू दे दे मालिकाना हक विरासत में |
मोहब्बतों के ज़ख्म रफ्ता-रफ्ता रिस्ते रहे,
मगर ये अश्क मेरे, बहते रहे दावत में |
अभी तो सारे शहर में, मेरी पहचान हुई ,
जहां पे साया तक रहा मेरी खिलाफत में |
जहाँ में तनहा जी सकूं, मेरा जिगर ही नहीं,
तभी लिखा है दिल पे नाम तिरा इबारत में |
सख्त जाँ हुआ था मैं नवाब बन के मगर ,
चला था तेवरों का सिलसिला शराफत में |
तभी लिखा है दिल पे नाम तिरा इबारत में |
सख्त जाँ हुआ था मैं नवाब बन के मगर ,
चला था तेवरों का सिलसिला शराफत में |
_______________हर्ष महाजन
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