Sunday, September 11, 2011

छंद


दर्द कलम का बढने लगा होने लगा कोहराम
बे-सबब उन लोगों का बिकने लगा ईमान
बिकने लगा ईमान भूले सब अपनी कला को
डूब रहे तो कहे टाल तू आयी बला को
कहे "हर्ष" कविराए सभी को भूलो न फ़र्ज़
लिखने वाला लिखता रहे भुला के दर्द |
हर्ष महाजन

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