दर्दो के सैलाब पलभर में चुन लेती है माँ
आह निकलने से पहले सुन लेती है माँ
सैलाब छुपा लेती है अपनी पलकों में वो
हम चाहे न चाहें खुद सपने बुन लेती है माँ |
_________हर्ष महाजन
आह निकलने से पहले सुन लेती है माँ
सैलाब छुपा लेती है अपनी पलकों में वो
हम चाहे न चाहें खुद सपने बुन लेती है माँ |
_________हर्ष महाजन
very sweet sir...
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता है सर...
ReplyDelete"हम चाहे न चाहें खुद सपने बुन लेती है माँ |" बहुत खूब.
Bahoot bahoot shukriyaa aapka Vidya ji
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