एक अपने बड़े ही सज्जन मित्र के लिए कही ये रचना ...मात्राओं की रेखा को लान्गती हुई यहाँ पेश करने की हिमाकत कर रहा हूँ....और उम्मीद करता हूँ के वो शख्स जहां भी हों उनके मन की दशा को पढ़ती हुई ये पंक्तिया उन्हें वापिस आने को मज़बूत करेंगी...मैं अपने साथिगन अपने हम-कला दोस्तों से दरख्वास्त करूँगा के इस कविता पर उनके भाव्बीने शब्द दरकार हैं......उम्मीद है ये कविता उनके भावों से सुसज्जित होगी............शुक्रिया |
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दर्द अब इतना होने लगा दिल में है तूफ़ान
तुझ सा न कोई मिल सका कैसा तू इंसान
कैसा तू इंसान यूँ ही सब छोड़ दिया क्या ?
मन के सब बे-ईमान किसी को असर हुआ क्या ?
कहे 'हर्ष' कविराए यहाँ तो सभी कमज़र्द
आ जाओ मिल के चलेंगे भुला के सब दर्द |
____________हर्ष महाजन
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