दोस्तों एक कच्ची ग़ज़ल आपके बीच जो अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं है......सीधे कलम से आप तक बिना कागज़ पर आये आपके समक्ष पेश है.....ये ग़ज़ल एक सज्जन की तहरीर पढ़ रहा था तो मेरी इस तहरीर ने जनम लिया ...उम्मीद है आप इसे अपनी कलम का साया देंगे....शुक्रिया|
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__________ग़ज़ल
उसने अपनी असलियत को पहचान लिया है
अपने पर आज उसने इक अहसान किया है |
हर बात पर किये हैं अपनों पर ज़ुल्म बहुत
अब नहीं करेगा ऐसा उसने एलान किया है |
उसकी फितरत से वाकिफ हैं सब मिलने वाले
उसने फिर कहा मुझे नाहक बदनाम किया है |
जिस थाली में खाया हर बार छेद किया उसने
हर झूठ को देकर हवा फिर तूफ़ान किया है |
उसके और हमारे बीच अब रिश्ता ही ऐसा है
उसकी हर खता पर हमने सब कुर्बान किया है |
____________हर्ष महाजन
उसने अपनी असलियत को पहचान लिया है
अपने पर आज उसने इक अहसान किया है |
हर बात पर किये हैं अपनों पर ज़ुल्म बहुत
अब नहीं करेगा ऐसा उसने एलान किया है |
उसकी फितरत से वाकिफ हैं सब मिलने वाले
उसने फिर कहा मुझे नाहक बदनाम किया है |
जिस थाली में खाया हर बार छेद किया उसने
हर झूठ को देकर हवा फिर तूफ़ान किया है |
उसके और हमारे बीच अब रिश्ता ही ऐसा है
उसकी हर खता पर हमने सब कुर्बान किया है |
____________हर्ष महाजन
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