Saturday, September 24, 2011

गजल


__________गज़लिका

अनजान सी जब गुजरी थोड़ी सी तब गुजरी
हद से तो तब गुजरी वो जिंद से जब गुजरी |

आँखों में काजल था और बालों में  संदल था
बे-मौत मारा गया जाने ख़्वाब से कब गुजरी |

कल रात वो ख्वाबों में नागिन बन डंसती रही
अब तक न कोई जिंद में ऐसी कोई शब् गुजरी |

जब यादों को भूला मैं नए साजों पे झूला मैं
वो गैरों को छोड़ आयी अब खुद पर जब गुजरी |

न ज़ुल्म करो इतना खत लिख न सको जितना
दुनिया छोड़  "हर्ष" चला हद से जब गुजरी |

______हर्ष महाजन

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