मेरे दोस्तों |
आज मेरे एक मित्र कवि ने मुझ से कुछ सवाल पूछे उनका उत्तर देते हुए मन में ख्याल आया के उनका निचोढ जो भी निकला उसे कविता मंच पर दर्ज कर दूं .....मेरे मन के भाव शायद किसी और को भी अच्छे लगें .....प्रश्न कुछ इस तरह था ...कवि-मन क्या होता है ? ये कौन लोग होते हैं ?
उसके प्रश्न पूछना था मुझे मेरा वो वक्त याद आ गया जब मेरे गुरु ने मुझे दीक्षा देते वक्त एक हिदायत दी थी .........इसी कवि-मन व्यक्तित्व के बारे में |
उनका कहना था -------कवि-मन वो व्यक्ति होता है जो कोई भी बात/कविता/ग़ज़ल या और भी कोई विधा से कहते वक्त जो संदेस उसकी जुबां से निकले वो किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होना चाहिए कवि मन बिना किसी द्वेष-भाव के ख्यालों में विचरित होता है अगर वो किसी व्यक्ति की क्रियाल्कालापों के वश में आकर अपनी कृतियों को अंजाम देता है तो वो कवि-मन हो ही नहीं सकता न ही कभी कामयाबी की सीडियां चड सकता है| उस व्यक्तित्व को लोग कुछ अरसे में दिल से निकाल बहार कर देते है |
गुरु जी ने ये कहते हुए बहुत से कवियों के नाम जब गिनवाए मन विचलित सा हो उठा.....उनोने बताया के उनके किसी भी लेख या कविता में किसी के प्रति कभी कोई बैर भाव नहीं देखोगे......और ये सच भी था....कबीर/तुलसी/बुल्लेशाह.......आदि आदि....---सभी तो अपनी धुन में मस्त कहा करते थे....|कुछ भी अगर हम तंज लिखते हैं किसी व्यक्ति विशेष से परे होना चाहिए जिस से कोई भी हम-कलम व्यक्ति आहात न हो जिस से अपनी कला का अपमान हो | कला की पूजा करो ...रोज़ नमन करो....हमारी कलम अगर अपने हुनर के लिए जहर उगलेगी तो खुद ही मर जायेगी....हमें इसकी रेस्पेक्ट करनी चाहिए......अपनी लेखनी जिस से भी आप रोज़ लिखते हैं ...उसकी पूजा करनी चाहिए और ये शपथ लेनी चाहिए ...ऐ खुदा ..हे भगवान....आज हमारी कलम से किसी का मन न दुखे.......और शाम को अपनी कलम को जब विराम दो तो ये मनन करके करो ..के आज हमारी कलम कितनी शांत भावना में चली ...|
जय गुरुदेव
आपका अपना
हर्ष महाजन
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