इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
Thursday, May 30, 2013
Tuesday, May 28, 2013
काश उसने मुझे इस तरह जुदा न किया होता
...
काश उसने मुझे इस तरह जुदा न किया होता,
ले लिया था फैसला मगर बेहूदा न लिया होता |
पत्थर, जो अभी तक यहाँ दिल लिए घुमते थे,
मेरी तहरीरों को उन्होंने दर्द-शुदा न किया होता |
__________________हर्ष महाजन
Monday, May 27, 2013
लगता है हरसूं नीरसता छाने लगी है
...
लगता है हरसूं नीरसता छाने लगी है,
दोस्ती में कलियाँ मुरझाने लगी है |
क्या हुआ किस तरह हुआ क्यूँ हुआ,
मंच पर लिखी तहरीर बताने लगी है |
क्या लिखूं किस तरह लिखूं बताये कोई,
परेशानी, पेशानी पे नजर आने लगी है |
सच है ये या कमबख्त ये वहम है मेरा ,
नज़्म पर अब हर रीव्यु बताने लगी है |
यहाँ हर शख्स हमसफ़र तो नहीं फिर भी,
रफ्ता-रफ्ता हर मसलाहत गहराने लगी है |
कुछ वक़्त और इंतज़ार कर के देख ऐ 'हर्ष'
लम्हा-लम्हा मुश्किलात नजर आने लगी है |
______________हर्ष महाजन
Saturday, May 25, 2013
एक जोडी दशक पर बे-रोक किया राज़ उसने
....
एक जोडी दशक पर बे-रोक किया राज़ उसने,
मेरे हर शेर पर बे-वज़ह किया ऐतराज़ उसने |
बेरुखी भी यूँ हुई कि इल्म मेरा कराह ही उठा,
उठी जो साज़ पे मेरी धुन किया बे-साज़ उसने |
_____________________हर्ष महाजन
Friday, May 24, 2013
तेरी बेरुखी का सबब है क्या मेरा दिल से तुझको सलाम है
...
तेरी बेरुखी का सबब है क्या पर दिल से तुझको सलाम है,
मेरी ग़ज़लें क्या मेरे नग्में क्या मेरी नज्में सब तेरे नाम है |
मेरे ख्वाब अश्कों में ढलते क्यूँ मेरे ग़म भी सारे मचलते क्यूँ,
मुझे फिर भी तुझसे गिला नहीं, दिल फ़कत तेरा गुलाम है |
मैं वो अश्क हूँ तेरी आँख का, जिसे ख्वाबों से है गिरा दिया,
मैं तो अब भी तेरी सुबह हूँ, न समझ तू ढलती ये शाम है |
तू है चाँद मैं हूँ फलक तेरा, तू है ज़िन्दगी मैं भी सांस हूँ ,
तू क्या जाने इश्क की इंतिहा , मेरा इश्क यूँ बदनाम है |
तू दरिया में तूफ़ान अगर , मैं भी यादों का सैलाब इधर ,
तू जो बंद नशे की शीशी गर, ये शख्स उसमें भी जाम है |
________________हर्ष महाजन
तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले
...
तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले,
ये हुस्न जाम संग जो उठ के बन शबाब चले |
ये बज़्म ऐसी थी गिर-गिर के उठे शेर बहुत,
ये दिल जो क़त्ल हुए फिर वो बन कबाब चले |
______________हर्ष महाजन
तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले,
ये हुस्न जाम संग जो उठ के बन शबाब चले |
ये बज़्म ऐसी थी गिर-गिर के उठे शेर बहुत,
ये दिल जो क़त्ल हुए फिर वो बन कबाब चले |
______________हर्ष महाजन
Monday, May 20, 2013
गलियां हैं मुहब्बत की करें किन को अब शामिल
...
गलियां हैं मुहब्बत की करें किन को अब शामिल,
इंसान की नगरी है मगर इंसान नही काबिल |
किस्से जो मुहब्बत के हैं अब तहरीर बने हैं ,
दीवानों में सिमट गए हैं प्यार भरे वो दिल |
___________________हर्ष महाजन
जीयुं या न जीयूं अपने अहसास जगाता रहता हूँ
...
जीयुं या न जीयूं अपने अहसास जगाता रहता हूँ ,
भंवर बने न बने समंदर में तूफ़ान उठाता रहता हूँ |
___________________हर्ष महाजन
जीयुं या न जीयूं अपने अहसास जगाता रहता हूँ ,
भंवर बने न बने समंदर में तूफ़ान उठाता रहता हूँ |
___________________हर्ष महाजन
Sunday, May 19, 2013
लाश पे लम्बू लगाये कौन
...
लाश पे लम्बू लगाये कौन
__________________
इतनी कडकी छायी हमपे,
घर की छत संभाले कौन |
दो-दो बेटी शादी-शुदा अब ,
नौकरी छूटी बताये कौन |
खाने को अब दाना नहीं है ,
घर का खर्चा चलाये कौन |
मियाँ बीवी दर-दर भटकें,
शर्म से सबको बताये कौन |
चिंता आखिरी पल की अब तो ,
अब घर पे तम्बू लगाए कौन |
कोई जहाँ में नहीं है अपना ,
खोल के दिल अब दिखाए कौन |
बिटिया दोनों भाई नहीं अब,
लाश पे लम्बू लगाए कौन |
खुदा भी क्यूँ कर लाया हमको,
वो भी चुप है बताये कौन |
________हर्ष महाजन |
हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को
...
हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को ,
चढ़ा तू जितने फूल चढाने है शाम को |
उल्टे पाँव चल दिया जज़्बात छोड़ कर,
जी रहा था अब तलक मैं तेरे नाम को |
पीयूँगा आज जब तलक रूह मेरे पास है,
आओ पियेंगे भूल कर किस्से तमाम को |
देख रहा हूँ लाश मैं, मातम है शाम को ,
ये रूह तड़प के कह रही अब छोडो जाम को |
किरदार लाश का 'हर्ष' मुश्किल निभा सकूं ,
कोई और चेहरा ढूंढो निपटा ले ये काम को |
________________हर्ष महाजन
हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को ,
चढ़ा तू जितने फूल चढाने है शाम को |
उल्टे पाँव चल दिया जज़्बात छोड़ कर,
जी रहा था अब तलक मैं तेरे नाम को |
पीयूँगा आज जब तलक रूह मेरे पास है,
आओ पियेंगे भूल कर किस्से तमाम को |
देख रहा हूँ लाश मैं, मातम है शाम को ,
ये रूह तड़प के कह रही अब छोडो जाम को |
किरदार लाश का 'हर्ष' मुश्किल निभा सकूं ,
कोई और चेहरा ढूंढो निपटा ले ये काम को |
________________हर्ष महाजन
जो जुदा हुआ वो जालिम दिल जार-जार रोया
...
जो जुदा हुआ वो जालिम दिल जार-जार रोया,
दे दी कसम जो उसने फिर ऐतबार रोया |
ये है बे-अदब क्यूँ दुनिया देती है दिल पे छाले,
ज्यूँ बदलते देखा साहिल दिल बार-बार रोया |
तेरी आशिकी पे हमने जो ढेरों थे गीत गाये ,
मैं तो धीरे-धीरे तनहा हो-कर बे-जार रोया |
खाईं जो कसमें तूने मोड देंगे रुख हवा का ,
जो कुचलते देखे अरमां दिल बनके खार रोया |
मेरी इल्तजा पे तूने जो कफ़न उठा के देखा,
मैंने अलविदा किया जो कर-कर दीदार रोया |
________________हर्ष महाजन
Saturday, May 18, 2013
आँखों में अश्क दिल में तेरे इतना प्यार क्यूँ है
...
आँखों में अश्क दिल में तेरे इतना प्यार क्यूँ है,
मैं तो बे-वफ़ा हूँ फिर भी तुझे ऐतबार क्यूँ है |
मैं खुदा नहीं हूँ फिर भी तू करे है क्यूँ इबादत,
मैं हूँ गैर की अमानत फिर भी निसार क्यूँ हैं |
मैं ये जानता हूँ तूने की है बंदगी खुदा सी ,
मेरे दिल में जाने तुझपे इतना ये खार क्यूँ है |
मेरी इल्तजा है तुझसे मुझे इस तरह न देखो,
न बता सकूंगा तुझको वफ़ा से इनकार क्यूँ है |
मैं तो खुद भी हूँ परेशां तनहा सा हो गया हूँ ,
अब खुदा कहे फलक से इतना बीमार क्यूँ है |
__________________हर्ष महाजन
Friday, May 17, 2013
मेरे गुरु से पहली मुलाकात
...
वो अज़ीम शख्स मंच पर,
मुझे शायर कहने लगा |
मैं भीड़ में बगुले झांकता
यकदम......
आंसुओं में बहने लगा |
एक अद्भुत थी घटना ,
जिसे.. मैं सहने लगा |
फिर कुछ तारीफों के पुल
कुछ मेरी ही ग़ज़लें ..
और उनके मुखड़े बतियाने लगा
यूँ ही .......
इक इक कर
वो .....
मेरी धड़कने बढाने लगा |
मैं परेशां !!!!
मुझे बार-बार वो बुलाने लगा
नाम सुन !!!!!!!!
सर से पाँव तक
मुझे पसीना आने लगा |
देख मेरी हरकत ..
वो मंच से
धीरे-धीरे नीचे आने लगा
ये हादसा अजीम था ....
मुझे तब से ....
मंच पर ले जाने लगा |
वो इक सुनहरा दिन ...
जिस दिन से
'हर्ष' उस शख्स का
अमूल्य
शिष्य कहलाने लगा |
वो 'चमन'
तब से ..
ये नया फूल
दिल से सहलाने लगा |
ये फूल बे-साख्ता
उस चमन में लहराने लगा |
___हर्ष महाजन |
वो अज़ीम शख्स मंच पर,
मुझे शायर कहने लगा |
मैं भीड़ में बगुले झांकता
यकदम......
आंसुओं में बहने लगा |
एक अद्भुत थी घटना ,
जिसे.. मैं सहने लगा |
फिर कुछ तारीफों के पुल
कुछ मेरी ही ग़ज़लें ..
और उनके मुखड़े बतियाने लगा
यूँ ही .......
इक इक कर
वो .....
मेरी धड़कने बढाने लगा |
मैं परेशां !!!!
मुझे बार-बार वो बुलाने लगा
नाम सुन !!!!!!!!
सर से पाँव तक
मुझे पसीना आने लगा |
देख मेरी हरकत ..
वो मंच से
धीरे-धीरे नीचे आने लगा
ये हादसा अजीम था ....
मुझे तब से ....
मंच पर ले जाने लगा |
वो इक सुनहरा दिन ...
जिस दिन से
'हर्ष' उस शख्स का
अमूल्य
शिष्य कहलाने लगा |
वो 'चमन'
तब से ..
ये नया फूल
दिल से सहलाने लगा |
ये फूल बे-साख्ता
उस चमन में लहराने लगा |
___हर्ष महाजन |
Thursday, May 16, 2013
इंसान जो किस्मत ढोता है ,फितरत से उसे वो भिगोता है
...
इंसान जो किस्मत ढोता है ,फितरत से उसे वो भिगोता है |
अपने को समंदर समझ के फिर नदिया में तन्हा रोता है |
रुतबा है अगर फूलों सा कभी तो महक कभी कम होती नहीं,
फितरत में तंज़ अगर शामिल तो महक भी संग-संग खोता है |
______________हर्ष महाजन
Wednesday, May 15, 2013
दर्द-ए-मोहब्बत खारिज है और दर्द-ए-वफ़ा भी खारिज है,
...
दर्द-ए-मोहब्बत खारिज है और दर्द-ए-वफ़ा भी खारिज है,
वो हुनर वफ़ा का क्या जाने, जो उम्मीद-ए-वफ़ा से खारिज है |
_________________________हर्ष महाजन
बर्बाद मोहब्बतां करने को बस एक ही कासिद यहाँ काफी है
...
बर्बाद मोहब्बतां करने को बस एक ही कासिद यहाँ काफी है,
हर प्यार पे कासिद राज़ करे अंजाम ऐ मोहब्बतां क्या होगा |
________________________हर्ष महाजन
Monday, May 13, 2013
इंतज़ार अब इस कदर महसूस होने लगा
...
इंतज़ार अब इस कदर महसूस होने लगा,
अपना वजूद भी साहिल पर खोने लगा |
ये सतयुग नहीं जो ज़िंदगी यूँ ही बाँधी जाए,
कलयुग है हर सुंदर लहर पर दिल मोहने लगा |
______________हर्ष महाजन
इंतज़ार अब इस कदर महसूस होने लगा,
अपना वजूद भी साहिल पर खोने लगा |
ये सतयुग नहीं जो ज़िंदगी यूँ ही बाँधी जाए,
कलयुग है हर सुंदर लहर पर दिल मोहने लगा |
______________हर्ष महाजन
टूटे हुए अहसासों को दर-दर लिए घूम रहा हूँ मैं
...
टूटे हुए अहसासों को दर-दर लिए घूम रहा हूँ मैं,
कोई संग्रह्नीय वस्तु बना दे वो शख्स ढूंढ रहा मैं |
________________हर्ष महाजन
कितना असल ओ कितना सूद शेरों पे मेरे बाकी है
...
कितना असल ओ कितना सूद शेरों पे मेरे बाकी है,
पैमानों में नाप रहे वो , मसरूफ यहाँ हर साकी हैं |
__________________हर्ष महाजन
कितना असल ओ कितना सूद शेरों पे मेरे बाकी है,
पैमानों में नाप रहे वो , मसरूफ यहाँ हर साकी हैं |
__________________हर्ष महाजन
Saturday, May 11, 2013
किसी को तू मिली किसी के हिस्से तन्हाई
____________नज़्म ____________
किसी को तू मिली किसी के हिस्से तन्हाई
______________________________
ये मोहब्बत है तेरी माँ अभी भी जिंदा हूँ ,
तेरे सदके तेरे सदके तेरे सदके मेरी माँ |
मेरी दुनिया ही है रौशन तेरी यादों से यहाँ,
मन की आँखों से मैं देखूं तुझे हर पल मैं यहाँ |
ये हवाएं भी है दुश्मन चले आंधी की तरह ,
दीया मैं अब भी जलाता हूँ तू जलाए थी जहां |
मैं वो भूलूंगा कैसे दिन जो तूने दान दिए,
कफ़न को ओड़ के जो तूने मेरे काम किये
भीग जाती हैं ये पलकें कभी मैं तन्हा रहूँ ,
कुछ जो बातें अनकही हैं अब मैं किस से कहूँ ?
भंवर में कश्ती अब भी मेरी कभी आती है,
फलक से तेरी दुआ आज भी आ जाती है |
किसी को तू मिली किसी के हिस्से तन्हाई
मैं
घर में छोटा था मेरे हिस्से तेरी याद आई..|
ये मोहब्बत है तेरी माँ अभी भी जिंदा हूँ ,
तेरे सदके तेरे सदके तेरे सदके मेरी माँ |
_____________हर्ष महाजन
तेरे सदके तेरे सदके तेरे सदके मेरी माँ |
_____________हर्ष महाजन
Tuesday, May 7, 2013
उनका ख्याल होटों से सर-ए-आम गुज़र गया
.....
उनका ख्याल होटों से सर-ए-आम गुज़र गया,
हुआ तो बेकरार मगर दिल से नाम उतर गया |
________________हर्ष महाजन
मेरी अदाओं को फकत खुदा ही जानता है
...
मेरी अदाओं को फकत खुदा ही जानता है,
तेरे दिए कांटें भी दिल फूल ही मानता है |
_______________हर्ष महाजन
जो शख्स दिल से नहीं दिमाग से निवेश करते है
...
जो शख्स दिल से नहीं दिमाग से निवेश करते है ,
वो शायरी के गुलदस्ते हमेशां खाली पेश करते हैं |
_______________हर्ष महाजन
जो शख्स दिल से नहीं दिमाग से निवेश करते है ,
वो शायरी के गुलदस्ते हमेशां खाली पेश करते हैं |
_______________हर्ष महाजन
किस अहाते मे कदम रख के चलते हो
...
किस अहाते मे कदम रख के चलते हो ,
खुद ही शर्त रखते हो फिर खुद हँसते हो |
कैसे भूल जाएँ वो शब-ओ-रोज़ की बातें,
प्यार भी करते हो फिर तन्हा तड़पते हो |
__________________हर्ष महाजन
Monday, May 6, 2013
ऐ मोहब्बत तेरी खातिर अपनी जाँ पे उतरे
...
ऐ मोहब्बत तेरी खातिर अपनी जाँ पे उतरे,
बे-ख़ौफ़ टूटी कश्ती दरिया में ले के उतरे |
सुफिआना ज़िंदगी है सुफिआना तेरा रस्ता,
हम चीर के भंवर को तेरी दास्ताँ पे उतरे |
मैं खड़ा हूँ सरहदों पे मन कैदी हो गया हैं,
ऐ खुदा इसकी खातिर अपने घर से उतरे |
ये विकारों के झमेले आ आ मुझ से खेलें,
हम खेल-खेल में इनको सागर में ले के उतरे |
___________हर्ष महाजन
ऐ मोहब्बत तेरी खातिर अपनी जाँ पे उतरे,
बे-ख़ौफ़ टूटी कश्ती दरिया में ले के उतरे |
सुफिआना ज़िंदगी है सुफिआना तेरा रस्ता,
हम चीर के भंवर को तेरी दास्ताँ पे उतरे |
मैं खड़ा हूँ सरहदों पे मन कैदी हो गया हैं,
ऐ खुदा इसकी खातिर अपने घर से उतरे |
ये विकारों के झमेले आ आ मुझ से खेलें,
हम खेल-खेल में इनको सागर में ले के उतरे |
___________हर्ष महाजन
Sunday, May 5, 2013
मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम
...
मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम,
ये हुनर मेरा सही , हैं उन्ही के दिए गम |
है ये पत्थरों का शहर उस पे झूठ औ ज़हर,
लफ्ज़ रुकते ही नहीं ख़त भी हो जाते हैं नम |
लब पे आती है ग़ज़ल, तन्हा होती है जो शब्
होती है सहर तो जब, गम हो जाते हैं सितम |
_______________हर्ष महाजन
न जाने वो शख्स किसकी मेहरबानियों का नतीजा है
...
न जाने वो शख्स किसकी मेहरबानियों का नतीजा है,
हुनर से बे-बाक और दिल-ओ-दिमाग से पाकीजा है |
__________________हर्ष महाजन
Saturday, May 4, 2013
उसने बे-सबब मेरे महबूब को घेरा है
...
उसने बे-सबब मेरे महबूब को घेरा है,
झाँक रहा है अब वहां जहाँ घर मेरा है |
बहुत किया है जतन दरीचों में जाने की
पर क्या करे वहाँ बस मेरा नाम उकेरा है |
_______________हर्ष महाजन
आज की हसीनों से दामन छुडाएं कैसे हम
...
__________एक गीत
आज की हसीनों से दामन छुडाएं कैसे हम,
झील सी आँखों में यूँ, डूब गए हों जैसे हम |
जुबां भी अब खामोश औ ये आँखें भी हुईं हैं नम,
दिल में हैं ज़ख्म बहुत भरेंगे कैसे-कैसे हम |
ये भीगी-भीगी पलकें हैं जो यादें उनकी झेलती,
तन्हा-शब्-ओ-तन्हा-गम झेलें कैसे-कैसे हम |
टुकड़ों में अब किया कतल बदल गए कातिल कई,
इन वक़्त की राहों को अब बदलें ऐसे-कैसे हम |
ये मेरी बदनसीबी कि न समझे वो न समझे हम,
यूँ रिश्तों पे पडा कफ़न ये भूलें ऐसे-कैसे हम |
____________________हर्ष महाजन |
ये चाहतों के सिलसिले हैं रोज़ बदलते क्यूँ
...
ये चाहतों के सिलसिले हैं रोज़ बदलते क्यूँ,
फिर हुस्न के बाजार में ये ख्वाब पलते क्यूँ |
माना कि आज प्यार के काबिल नहीं जहां,
तो फिर यहाँ दीवानों के अरमां मचलते क्यूँ |
अब अस्मतें भी लुट रहीं और ख्वाब दर-बदर,
फिर जाहिलों से शहर में रकीब जलते क्यूँ |
बीमार दिल लिए हुए जो आशिकी में गुम,
फिर आशिकों के आजकल दिल दहलते क्यूँ |
ये बदनसीबी शहर की है फलक को छू रही,
ऐ ‘हर्ष’ बता इन ग़ज़लों में लफ्ज़ फिसलते क्यूँ |
________________हर्ष महाजन
ये चाहतों के सिलसिले हैं रोज़ बदलते क्यूँ,
फिर हुस्न के बाजार में ये ख्वाब पलते क्यूँ |
माना कि आज प्यार के काबिल नहीं जहां,
तो फिर यहाँ दीवानों के अरमां मचलते क्यूँ |
अब अस्मतें भी लुट रहीं और ख्वाब दर-बदर,
फिर जाहिलों से शहर में रकीब जलते क्यूँ |
बीमार दिल लिए हुए जो आशिकी में गुम,
फिर आशिकों के आजकल दिल दहलते क्यूँ |
ये बदनसीबी शहर की है फलक को छू रही,
ऐ ‘हर्ष’ बता इन ग़ज़लों में लफ्ज़ फिसलते क्यूँ |
________________हर्ष महाजन
जो तसव्वुर में मेरे कोई अक्सर यूँ घूमती है
...
जो तसव्वुर में मेरे कोई अक्सर यूँ घूमती है,
मेरे तन्हा पड़े इस दिल में धड़कन को ढूँढती है |
मेरी इल्तजा है उनसे इन गलियों से न गुजरें ,
मेरे तन बदन में सिहरन बिजली की गूंजती है |
___________________हर्ष महाजन
हर चीज़ को देखने का अपना इक अंदाज़ होता है
हर चीज़ को देखने का अपना इक अंदाज़ होता है
जहां प्यार नहीं वहाँ बे-वफाओं का राज़ होता है |
__________________हर्ष महाजन
बे-अदब से इन दिलों में है अँधेरा कहीं उजाला
...
बे-अदब से इन दिलों में है अँधेरा कहीं उजाला,
मैंने अपनों से जो पाया वही शब्दों में है ढाला |
बे-वफ़ा सी ज़िन्दगी ने जब छोड़ा मुझको तन्हा,
जो प्यार था मेरे दिल में अब बन गया है छाला |
_______हर्ष महाजन
बे-अदब से इन दिलों में है अँधेरा कहीं उजाला,
मैंने अपनों से जो पाया वही शब्दों में है ढाला |
बे-वफ़ा सी ज़िन्दगी ने जब छोड़ा मुझको तन्हा,
जो प्यार था मेरे दिल में अब बन गया है छाला |
_______हर्ष महाजन
Friday, May 3, 2013
तेरी बे-रुखी भी भली लगे,तेरी आशिकी भी लगे भली
...
तेरी बे-रुखी भी भली लगे,तेरी आशिकी भी लगे भली ,
मैं तो ठोकरों में पली बड़ी, तूने चाहा तेरे ही संग चली |
मेरे गेसुओं में वो ख़म नहीं, जो रूझा सकें तुझे दम नहीं,
तेरी चाहतों का सिला है ये, कि लगे तेरी अब भली गली |
मैं तो खुद ही अब हैरान हूँ , तेरे प्यार से परेशान हूँ
मैं तो उलझी काँटों में सदा, अब हर तरफ है कली-कली |
क्या धोखा है क्या फरेब है, क्या झूठ क्या बे-ईमानी है,
गर होगा मुझ-संग दे दूँगी मैं जिस्म-ओ-जां की तिलांजलि |
_______________________हर्ष महाजन
क्या कहूँ ये रुआं-रुआं मेरे जिस्म का बेताब है
...
क्या कहूँ ये रुआं-रुआं मेरे जिस्म का बेताब है,
यूँ बे-रुखी को देखकर लगता मुझे ये ख्वाब है |
ये ख्वाब उनकी रूह को छू लूं मुझे लगता नहीं,
मेरी कलम से निकला है ये आखिरी इंतेखाब है |
_______________हर्ष महाजन
वो हर बार सीढ़ियाँ चढ़ती है उतर जाती है
...
वो हर बार सीढ़ियाँ चढ़ती है उतर जाती है
इश्क में वो बार-बार इस तरह सताती है |
______________हर्ष महाजन
वो हर बार सीढ़ियाँ चढ़ती है उतर जाती है
इश्क में वो बार-बार इस तरह सताती है |
______________हर्ष महाजन
मेरी हर सांस में तुम हर पल रहने लगी हो
...
मेरी हर सांस में तुम हर पल रहने लगी हो
फिर जुर्म ये उसे तुम ख्वाब कहने लगी हो ?
___________________हर्ष महाजन
मेरी हर सांस में तुम हर पल रहने लगी हो
फिर जुर्म ये उसे तुम ख्वाब कहने लगी हो ?
___________________हर्ष महाजन
साँसों पे इतना गरूर न करो 'हर्ष' के बे-वफायी पे उतर आयें
....
साँसों पे इतना गरूर न करो 'हर्ष' के बे-वफायी पे उतर आयें
इश्क जब रुलाने पे आता है तो अपनी हद्द से गुजर जाता है ।
_______________________________हर्ष महाजन
साँसों पे इतना गरूर न करो 'हर्ष' के बे-वफायी पे उतर आयें
इश्क जब रुलाने पे आता है तो अपनी हद्द से गुजर जाता है ।
______________________________
इन हवाओं में तुम्हे इक फरमान भेजा है
...
इन हवाओं में तुम्हे इक फरमान भेजा है;
सूरज की किरणों संग इक पैगाम भेजा है |
घर जा चूका है चाँद छुप गए सब सितारे;
सुबह हो गयी उठो दिल से सलाम भेजा है |
शुभ-प्रभात , शुभ दिन।
हर्ष महाजन
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