Thursday, May 30, 2013

तेरी जुल्फें यूँ शानों पे बिखर जाए भी तो क्या है



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तेरी जुल्फें यूँ शानों पे बिखर जाएँ भी तो क्या है,
ये शौक तेरे दर पे ही निकल जाएँ भी तो क्या है |

ये मंजिल अब रुकी सी ये रुकी-रुकी सी शब् भी ,
अब ये मंजिलें हैं जानां निखर जाएँ भी तो क्या है |

गर तुम भी हम से खुश हो फिर ऐतराज़ भी कैसा,
फिर अपने भी खुशी में विफर जाएँ भी तो क्या है |

ये जो प्यास दी है तुमने अब बुझेगी किस तरह से ,
इन सिलसिलों में साँसे उखड जाएँ भी तो क्या है |

सदियों से दूर किये थे मुझे दिल की धडकनों से ,
चुपके से दिल में अब हम उतर जाएँ भी तो क्या है |

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हर्ष महाजन

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