Thursday, May 2, 2013

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12

दोस्तों कत्ता, मुक्तक और रुबाई  किसे कहते हैं ?...

एक बार फिर से नजर डाल ली जाए

इस बारे मे यहाँ थोडा ब्यान करना चाहता हूँ.....इसके साथ रुबाई को जोड़े लेते हैं ...ये सब क्या हैं ? इसके बारे में भी भ्रम बहुत जियादा हुआ जाता है....हमारे नेट पर भी इस तरह के कई मंच हैं जहां इस नाम से बहुत कुछ पोस्ट हो रहा और जहां तक इसकी टेक्नेकलटी का सवाल है शायद फालो नहीं होती.....हर चार लाईन को कत्ता या मुक्तक माल लिया जाता है....लेकिन ऐसा है नहीं .....उर्दू मे कत्ता और हिंदी मे मुक्तक कहलाने वाला चार मिसरों का ये बण्डल बहुत ही पेचीदा है.....

पहले तो हम कत्ता और रुबाई को इसकी परीभाषा से ही अलग किये देते हैं...जिसे लोग आसानी से किसी को भी रुबाई कहने लगते हैं और किसी भी भी मुक्तक या कत्ता कहने लगते हैं.....

कत्ता और रुबाई मे अंतर .........

कत्ता:मुक्तक

इसमें पूरा शे'र होता है ( मतला + शे'र ) जो ज़यादातर एक ही ज़मीन पर होते हैं | जब एक शे'र में पूरा ख्याल जाहिर नहीं होता या न हो पाए तो शायर उस अहसास को दुसरे शे'र में पूरा(conclude) करता है |

____________________जैसे शरद तैलंग के ये कत्ते

ये फ़नकार सबसे जुदा बोलता है
ख़री बात लेकिन सदा बोलता है,
विचरता है ये कल्पनाओं के नभ में,
मग़र इसके मुँह से ख़ुदा बोलता है ।
_______________
बात दलदल की करे जो वो कमल क्या समझे ?
प्यार जिसने न किया ताजमहल क्या समझे ?
यूं तो जीने को सभी जीते हैं इस दुनिया में,
दर्द जिसने न सहा हो वो ग़ज़ल क्या समझे ?
_____________________
मन्ज़िलों से देखिए हम दूर होते जा रहे है
हम भटकने के लिए मज़बूर होते जा रहे है
काम जब अच्छे किए तो कुछ तबज्जों न मिली,
जब हुए बदनाम तो मशहूर होते जा रहे है ।

शरद तैलंग

_______________________

रुबाई:


जबकि रुबाई में मिसरे तो चार होते हैं पर वो दो शे'र नहीं होते चार मिसरे ही होते हैं और उनकी लय (rhyming)भी कत्ते की तरह ही होती है |रुबाई में एक ही ज़मीन और ख्याल होता है जो पहले तीन मिसरों मे develop होता है और चौथे मिसरे में conclude होता है |
दुसरे शब्दों में ...
रुबाई में चार पंक्तियाँ होती हैं, जिनकी प्रथम दो पंक्तियों और चौथी पंक्ति के तुकांत मिलने चाहिए ।
यदि तीसरी पंक्ति का भी तुकांत मिलता है तो कोई त्रुटि नहीं मानी जाती है ।
रुबाई के लिए चौबीस बहर ( वज़्न ) निश्चित किये गए हैं ।

अगर आपने हरिवंश् राय बच्हन जी की मधुशाला पढ़ी हो...तो आसान हो जाएगा...

उनकी ये मधुशाला ....सारी रुबाई में ही कही गयी है....

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

साभार

हर्ष महाजन
___________
 नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और उस पर जाइए .....
A.कविता का स्वरुप
1.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
 

No comments:

Post a Comment