...
हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को ,
चढ़ा तू जितने फूल चढाने है शाम को |
उल्टे पाँव चल दिया जज़्बात छोड़ कर,
जी रहा था अब तलक मैं तेरे नाम को |
पीयूँगा आज जब तलक रूह मेरे पास है,
आओ पियेंगे भूल कर किस्से तमाम को |
देख रहा हूँ लाश मैं, मातम है शाम को ,
ये रूह तड़प के कह रही अब छोडो जाम को |
किरदार लाश का 'हर्ष' मुश्किल निभा सकूं ,
कोई और चेहरा ढूंढो निपटा ले ये काम को |
________________हर्ष महाजन
हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को ,
चढ़ा तू जितने फूल चढाने है शाम को |
उल्टे पाँव चल दिया जज़्बात छोड़ कर,
जी रहा था अब तलक मैं तेरे नाम को |
पीयूँगा आज जब तलक रूह मेरे पास है,
आओ पियेंगे भूल कर किस्से तमाम को |
देख रहा हूँ लाश मैं, मातम है शाम को ,
ये रूह तड़प के कह रही अब छोडो जाम को |
किरदार लाश का 'हर्ष' मुश्किल निभा सकूं ,
कोई और चेहरा ढूंढो निपटा ले ये काम को |
________________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment