Sunday, May 5, 2013

मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम

...

मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम,
ये हुनर मेरा सही , हैं उन्ही के दिए गम |

है ये पत्थरों का शहर उस पे झूठ औ ज़हर,
लफ्ज़ रुकते ही नहीं ख़त भी हो जाते हैं नम |

लब पे आती है ग़ज़ल, तन्हा होती है जो शब्
होती है सहर तो जब, गम हो जाते हैं सितम |

_______________हर्ष महाजन

No comments:

Post a Comment