Sunday, June 8, 2014

वो शाम और वो जुल्फें मुझे खूब याद आयें

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वो शाम और वो जुल्फें, मुझे खूब याद आयें,
नींदों में है खलिश सी कह दो की बाज़ आयें |
मेरे लफ्ज़ मेरी ग़ज़लें...अब हुस्न से हैं तारी,
कर तू सिंगार इतना......देने को ताज आयें |

_____________हर्ष महाजन

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