Sunday, September 16, 2012

क्यूँ सतायेंगे मुझे जो हर बात सुनाते हैं


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क्यूँ सतायेंगे मुझे जो हर बात सुनाते  हैं
वो अपने हैं पर सब दुश्मन बताते हैं |

तलाश-ए-यार में बीत जायेगी उम्र यूँ

आस्तीन के सांप हर गाम पाए जाते हैं |

नफस-नफस उनके ग़मों से मुअत्तर है
इस कदर दिल पर नश्तर चुबा जाते हैं |

कब तक बचा के रखेंगे दोस्ती को यूँ ही
डर के बादल उन पर हमेशां मंडराते हैं |

ज़िंदगी का दस्तूर ही कुछ ऐसा है 'हर्ष'
दोस्ती के लिबास में दुश्मन आ जाते हैं |

_______________हर्ष महाजन |

मुअत्तर = भीगा हुआ |

1 comment:

  1. वाह! क्या बात कही है आपने। मज़ा आ गया।

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