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क्यूँ सतायेंगे मुझे जो हर बात सुनाते हैं
वो अपने हैं पर सब दुश्मन बताते हैं |
तलाश-ए-यार में बीत जायेगी उम्र यूँ
आस्तीन के सांप हर गाम पाए जाते हैं |
नफस-नफस उनके ग़मों से मुअत्तर है
इस कदर दिल पर नश्तर चुबा जाते हैं |
कब तक बचा के रखेंगे दोस्ती को यूँ ही
डर के बादल उन पर हमेशां मंडराते हैं |
ज़िंदगी का दस्तूर ही कुछ ऐसा है 'हर्ष'
दोस्ती के लिबास में दुश्मन आ जाते हैं |
_______________हर्ष महाजन |
मुअत्तर = भीगा हुआ |
वाह! क्या बात कही है आपने। मज़ा आ गया।
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