Saturday, September 29, 2012

कभी जुल्फों पे कभी उनकी पेशानी पे नज़र

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कभी जुल्फों पे कभी उनकी पेशानी पे नज़र,
लब चले मेरे जहां उनकी निशानी पे नजर |

उनकी नजरों से लगा मुझको पहचाना ही नहीं
मैं परीशाँ हूँ मगर उनकी हैरानी पे नजर |

लब पे शिकवे हैं मगर कैसे निभाएं उनको,
भूले वो रस्मे-वफ़ा उनकी नदानी पे नजर |

कोई लम्हा भी खुशी का न नजर आया मुझे,
है तो अपने ही मगर गैर जवानी पे नजर |

बे-वफ़ा होके भी वो मेरी रगों में शामिल ,
मैं जुदा उनसे मगर उनकी कहानी पे नजर |


___________हर्ष महाजन |

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