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जब वो मतलब से बात करते हैं,
देख आईने में फिर क्यूँ डरते हैं |
रात गुजरे है रोज़ तसव्वुर में ,
दिन भी उनके यूँ ही गुज़रते हैं |
दिल पे काबिज़ माहौल अंधेरों का
गम को पीते हैं और बिखरते हैं |
वक़्त अच्छा नहीं ये शक भी नहीं
अपने संग हैं वो पर कतरते हैं |
इश्के-हस्ती न हम संवार सके,
दिल में आंखों से रोज़ उतरते हैं |
__________हर्ष महाजन
दिन भी उनके यूँ ही गुज़रते हैं |
दिल पे काबिज़ माहौल अंधेरों का
गम को पीते हैं और बिखरते हैं |
वक़्त अच्छा नहीं ये शक भी नहीं
अपने संग हैं वो पर कतरते हैं |
इश्के-हस्ती न हम संवार सके,
दिल में आंखों से रोज़ उतरते हैं |
__________हर्ष महाजन
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