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मैंने छेड़ी है ग़ज़ल यारो मुझको दाद मिले,
सुनने वालों को मगर अपनी ही रुदाद मिले ।
उम्र-भर जिनके लिए मैं ये ग़ज़ल कहता रहा,
उनके दर से न कभी मुझको इमदाद मिले ।
राज-ए-दिल राज है हम-राज का चर्चा न करें,
उनके अहसास मेरी ग़ज़लों में बर्बाद मिले ।
नींद से उठ के फिरा करता हूँ यादों में कभी,
कहूं मैं ऐसी ग़ज़ल जिसमे रूह आबाद मिले।
ज़द्द-ओ-ज़ह्द की ज़िन्दगी में उम्र बीत चली,
खुदा करे की उनको नेक ही औलाद मिले ।
_____________हर्ष महाजन ।
मैंने छेड़ी है ग़ज़ल यारो मुझको दाद मिले,
सुनने वालों को मगर अपनी ही रुदाद मिले ।
उम्र-भर जिनके लिए मैं ये ग़ज़ल कहता रहा,
उनके दर से न कभी मुझको इमदाद मिले ।
राज-ए-दिल राज है हम-राज का चर्चा न करें,
उनके अहसास मेरी ग़ज़लों में बर्बाद मिले ।
नींद से उठ के फिरा करता हूँ यादों में कभी,
कहूं मैं ऐसी ग़ज़ल जिसमे रूह आबाद मिले।
ज़द्द-ओ-ज़ह्द की ज़िन्दगी में उम्र बीत चली,
खुदा करे की उनको नेक ही औलाद मिले ।
_____________हर्ष महाजन ।
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