दर-दर भटक-भटक के जुटाई हैं रोटियाँ
महेनत से जोड़-जोड़ कमाई है रोटियाँ।
धुप में झुलसता था फिर काम के बिना
भूखी जो देखी नज़रें तो छुपाई है रोटियाँ |
मजदूर बन के ढोये थे मलबे की गोटियाँ
फिर शाम को अदब से फिर खाते थे रोटियाँ ।
घर आ नहीं सका था मैं त्योहारों में कभी
दिल मार , खा रहा था बासी मैं रोटियाँ ।
सड़कों पे खा रहा था सिपाही की सोटियाँ
मैं इस तरह कमा रहा दो जून की रोटियाँ ।
दर-दर भटक-भटक के जुटाई हैं रोटियाँ
महेनत से जोड़-जोड़ कमाई है रोटियाँ ।
____________हर्ष महाजन
महेनत से जोड़-जोड़ कमाई है रोटियाँ।
धुप में झुलसता था फिर काम के बिना
भूखी जो देखी नज़रें तो छुपाई है रोटियाँ |
मजदूर बन के ढोये थे मलबे की गोटियाँ
फिर शाम को अदब से फिर खाते थे रोटियाँ ।
घर आ नहीं सका था मैं त्योहारों में कभी
दिल मार , खा रहा था बासी मैं रोटियाँ ।
सड़कों पे खा रहा था सिपाही की सोटियाँ
मैं इस तरह कमा रहा दो जून की रोटियाँ ।
दर-दर भटक-भटक के जुटाई हैं रोटियाँ
महेनत से जोड़-जोड़ कमाई है रोटियाँ ।
____________हर्ष महाजन
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