..
ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
कली-कली हर ड़ाल पर लिखा 'बोस' 'भगत',आज़ाद यहाँ,
माता गंगा, जमुना विचरित, अजूबा विश्व का ताज यहाँ ।
भारत देश आज़ाद है जब से कोई दुश्मन यहाँ ठहरा नहीं,
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
कभी हुआ परिवेश राम का कभी कृष्ण अवतार हुआ
कभी हुआ महाभारत का जंग कभी कंस संहार हुआ ।
ऐसी रामायण, ग्रन्थ न गीता ऐसा कोई रंग गहरा नहीं ,
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
जम्मू और कश्मीर की खातिर कितनी कोखें उजड़ गयीं,
वीर भगत सिंह सुखदेव जैसे रोज़ जनम यहाँ लेते नहीं ।
ऐसा हिन्दू ,सिख न मुस्लिम ऐसा कोई रिश्ता गहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
________________हर्ष महाजन ।
No comments:
Post a Comment