Wednesday, October 10, 2012

मैं हूँ वो अश्के खुदा आँखों में बसर रखता हूँ

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मैं हूँ वो अश्के खुदा आँखों में बसर रखता हूँ,
दामन में गम या ख़ुशी सबकी खबर रखता हूँ |

जब भी आँखों से मैं सैलाब बन निकलता हूँ ,
रूठी तकदीरें बदलने का असर रखता हूँ |

जब भी ज़ख्मों को वफाओं से सकूं मिलता है,
कुछ असर अपना भी आँखों में मगर रखता हूँ |

मैं हूँ नींदों से जुदा ज़ख्मी जिगर रखता हूँ ,
गम-ओ-खुशी खुद की नहीं मैं तो सफ़र रखता हूँ |

जब भी ज़ख्मों से जुदा हो पलक से गिरता हूँ ,
फ़ना भी होके मगर आँखों में गुज़र रखता हूँ |

____________________हर्ष महाजन

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