...
कभी नगमों में मुझे उसने पुकारा होगा,
कभी माटी पर मेरा नाम उकारा होगा |
बे-वफ़ा होके भी जो फूल गिरह में बाँधा,
बड़ी मुश्किल से मुझे दिल से उतारा होगा |
उसकी आँखों में निहाँ संग-संग बीता सफ़र
ऐसे हालातों में अब कैसे किनारा होगा |
दर्द महसूस करे ऐसा हुनर है उसमे
उसके दिल में मेरी तल्खी का पिटारा होगा |
कितना अब शोर हवाओं में मगर 'हर्ष' कहाँ
उसने शायद अपनी मैयत से पुकारा होगा |
___________हर्ष महाजन |
बड़ी मुश्किल से मुझे दिल से उतारा होगा |
उसकी आँखों में निहाँ संग-संग बीता सफ़र
ऐसे हालातों में अब कैसे किनारा होगा |
दर्द महसूस करे ऐसा हुनर है उसमे
उसके दिल में मेरी तल्खी का पिटारा होगा |
कितना अब शोर हवाओं में मगर 'हर्ष' कहाँ
उसने शायद अपनी मैयत से पुकारा होगा |
___________हर्ष महाजन |
No comments:
Post a Comment