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हमने चाहा था ये इल्जाम न तेरे सर आये,
गुनाह जो हमने किया वो न तेरे पर आये |
कली जो बाग़ में भी फूल कभी न बन पायी,
हुआ ताज्जुब मुझे जो माली ले के घर आये |
ग़मों के दौर में खुशियों से आँखें भर आयीं,
मगर ज़रूरी नहीं ये अश्क रो-रो कर आये |
मेरी तकदीर लिख खुदा भी जो पलट जाए,
खता थी क्या ज़मीं पे खुद खुदा उतर आये |
मरे जो हूर तो बने है ताजमहल उनका,
कफन मिले न आशिकों को गर उमर आये |
_________________हर्ष महाजन
हमने चाहा था ये इल्जाम न तेरे सर आये,
गुनाह जो हमने किया वो न तेरे पर आये |
कली जो बाग़ में भी फूल कभी न बन पायी,
हुआ ताज्जुब मुझे जो माली ले के घर आये |
ग़मों के दौर में खुशियों से आँखें भर आयीं,
मगर ज़रूरी नहीं ये अश्क रो-रो कर आये |
मेरी तकदीर लिख खुदा भी जो पलट जाए,
खता थी क्या ज़मीं पे खुद खुदा उतर आये |
मरे जो हूर तो बने है ताजमहल उनका,
कफन मिले न आशिकों को गर उमर आये |
_________________हर्ष महाजन
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