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समंदर से दूर रह कर भी उसने लहरों का मुख मोड़ा है,
कितना बे-रहम निकला उसने टूटा दिल फिर से तोडा है |
कैसे रुकेगा दर्द-ए-चश्म उसका दरिया जहां रुका ही नहीं,
कितनी ही रूहों का दामन, उसने नापाक कर छोड़ा है |
_______________________हर्ष महाजन
समंदर से दूर रह कर भी उसने लहरों का मुख मोड़ा है,
कितना बे-रहम निकला उसने टूटा दिल फिर से तोडा है |
कैसे रुकेगा दर्द-ए-चश्म उसका दरिया जहां रुका ही नहीं,
कितनी ही रूहों का दामन, उसने नापाक कर छोड़ा है |
_______________________हर्ष महाजन
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