Saturday, October 6, 2012

थी बहारों की ये मजिल पर खिज़ाओं का सफ़र

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थी बहारों की ये मजिल पर खिज़ाओं का सफ़र,
बड़ी मुश्किल से है काटा इन सजाओं का सफ़र |

तेरे गम से मेरे गम का भी सफ़र बाक़ी है,
ये न भूलो ये रकीबों की खताओं का सफ़र |

जुनून-ए-इश्क में गाफिल संग पैरों का सफ़र,
ये तो मुमकिन नहीं भूलेंगे वफाओं का सफ़र |

खुदा ने पैदा किया तब से खिजाँ से रिश्ता है,
अब तो भाता नहीं मुझको फिजाओं का सफ़र |

मेरी तो ज़िंदगी भी दर्द, मसीहा भी है दर्द,
कोई ख़्वाबों में न कर ले दुआओं का सफ़र |

_______________हर्ष महाजन

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