...
कितनी तकलीफ में हो.....इतना अहसास मुझे,
इश्क, दिल्लगी-ओ-वफ़ा आती न पर रास मुझे |
बीते हैं शाम-ओ-सहर........ज़ख्म सहलाते हुए,
अब तो यूँ भी न रहा......खुद पर विश्वास मुझे |
इश्क, दिल्लगी-ओ-वफ़ा आती न पर रास मुझे |
बीते हैं शाम-ओ-सहर........ज़ख्म सहलाते हुए,
अब तो यूँ भी न रहा......खुद पर विश्वास मुझे |
______________हर्ष महाजन
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