...
आज फलक से नीचे उतर आया हूँ,
मुद्दत बाद मैं.....अपने घर आया हूँ |
मुद्दत बाद मैं.....अपने घर आया हूँ |
कितना तडपा हूँ परों को समेटने में,
मगर लगा होकर दर-बदर आया हूँ |
जिनके दिलों में था नाम ‘हर्ष’ तेरा,
शायद उन दिलों से निकल आया हूँ |
मुक्त हुआ तो हूँ बेशक काम-काज से,
मगर अपने वजूद से बिखर आया हूँ |
शक नहीं वजह तो होगी उनके पास,
ख़त जिन दिलों पे मैं लिख कर आया हूँ |
____________हर्ष महाजन
मगर लगा होकर दर-बदर आया हूँ |
जिनके दिलों में था नाम ‘हर्ष’ तेरा,
शायद उन दिलों से निकल आया हूँ |
मुक्त हुआ तो हूँ बेशक काम-काज से,
मगर अपने वजूद से बिखर आया हूँ |
शक नहीं वजह तो होगी उनके पास,
ख़त जिन दिलों पे मैं लिख कर आया हूँ |
____________हर्ष महाजन
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