...
कुछ पुराने मेरे ख़त.......पढ़ के रोई जाती है,
कम्बखत याद मुझे भी.....तो बहुत आती है |
उसके इल्जाम यूँ दिल पे पड़े खंजर से मगर,
है शमा ज़िंदा........दिया मैं हूँ तो वो बाती है |
कम्बखत याद मुझे भी.....तो बहुत आती है |
उसके इल्जाम यूँ दिल पे पड़े खंजर से मगर,
है शमा ज़िंदा........दिया मैं हूँ तो वो बाती है |
____________हर्ष महाजन
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