तू जो पल भर भी मिले शाम गुज़र जायेगी
गर जो इनकार किया जान निकल जायेगी ।
अश्क गिरते हैं तेरी याद तलक जो आएगी
और इस दर्द से हर शाम निकल जायेगी ।
ज़ख्म नासूर बन इलाज को तरसेंगे यहाँ
बे-वफ़ा खुद ही वफाओं को निगल जायेगी ।
इश्क तो तुझ से है अब कैसे इसे दफन करूँ
हुआ मैं तुझ से जुदा जान निकल जायेगी ।
तेरी खामोशी मेरी जान पे बन आती है
कुछ तो बोलो रे 'हर्ष' सांस संभल जायेगी ।
___________हर्ष महाजन ।
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