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मेरे ज़ख्मों को वो जी भर के सजा देते हैं
जो तड़प करदे वो कम उसको मिटा देते हैं ।
मेरे दामन के वो गम अश्क दबा लें लेकिन
वो तो अब पलकों से आंसू भी गिरा देते हैं ।
पशेमाँ होके भी पत्थर से लगाया जो दिल
पर वो काँटों सा समझ दर से हटा देते हैं ।
मैं जुदा कैसे करूँ गम जो बने हैं साहिल
बन के हमदर्द वो ज़ख्मों को हवा देते हैं ।
हर कदम मेरा सवालात नज़र आता है
फिर वो शिकवे-ओ-शिकायत की दवा देते हैं ।
___________हर्ष महाजन ।
मेरे ज़ख्मों को वो जी भर के सजा देते हैं
जो तड़प करदे वो कम उसको मिटा देते हैं ।
मेरे दामन के वो गम अश्क दबा लें लेकिन
वो तो अब पलकों से आंसू भी गिरा देते हैं ।
पशेमाँ होके भी पत्थर से लगाया जो दिल
पर वो काँटों सा समझ दर से हटा देते हैं ।
मैं जुदा कैसे करूँ गम जो बने हैं साहिल
बन के हमदर्द वो ज़ख्मों को हवा देते हैं ।
हर कदम मेरा सवालात नज़र आता है
फिर वो शिकवे-ओ-शिकायत की दवा देते हैं ।
___________हर्ष महाजन ।
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