Sunday, June 10, 2012

यूँ न देख तू मुझको इस तरह, कुछ शेर मैं अपने संवार लूं

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यूँ न देख तू  मुझको इस तरह, कुछ शेर मैं अपने संवार लूं
जो भी मिसरे हों सब बहर में, वो ग़ज़ल में सब मैं उतार लूं ।

तू जुदा हुई  मेरे दिल से जब, मेरे शेर भी मुझ से बिछुड़ गए
तू  तो अब भी धड़कन है मेरी , तू कहे मैं उनको संवार लूं   ।

मैं तो बिखरा हूँ फूलों सा अब, किसी उजड़े उजड़े बाग़ सा ,
मैं तो फिर भी खुशबु की तरह, ज़िन्द अपनी तुझपे मैं वार लूं ।

मैं तो भूलकर नहीं भूलता, अहल-ए-वफ़ा का वो सिलसिला
तू बता तेरी क्या अनाँ पे अब, मैं खुद ही खुद को सुधार लूं ।

कुछ दे न ऐसा मिजाज़ मुझे कोई गुनाह का मेरे परवरदिगार
मैं तो इस जहां में किसी तरह कुछ पल ख़ुशी से गुज़ार लूं ।


_____________________हर्ष महाजन ।

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