Saturday, June 16, 2012

कलम चले तो मैं दिल की आवाज़ लिखता हूँ

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कलम चले तो मैं दिल की आवाज़ लिखता हूँ
इत्तेफाक हो न तुम्हे फिर भी  राज़  लिखता हूँ ।

मिला वो ज़िन्दगी में तब से नशा छाने लगा
वो शख्स जैसा था उसका अंदाज़ लिखता हूँ ।

चुरा लिया है उसने दिल के दरीचों से सब कुछ
खुदा कसम मैं अब दिल के अल्फाज़ लिखता हूँ

इतना बढ़ा है दर्द अब जुबां पे आने लगा
गुजरता 'दिल' से मेरे जिसको साज़ लिखता हूँ ।

वो ज़ख्म देते चलें हम भी उनको भरते चलें
इसी अंदाज़ को आग़ाज़-ए-इश्क लिखता हूँ ।

____________हर्ष महाजन ।

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