मेरी कलम के राजदां हुआ किये जो रोज़
अबकि खुला दरबार लगाया किये है रोज़ ।
पत्थरों की पूजा नित किया किये जो रोज़
वो आज इश्क खूब सीखाया किये हैं रोज़ ।
सुफिआना गीतों से कभी सजा किये जुबां
मैखाने में शराब पिलाया किये हैं रोज़ ।
मंदिरों के नाम पर चलाया किये तलवार
बे-नागा वो अलख जलाया किये हैं रोज़ ।
पीने के ही ख्याल से लडखडाते थे कभी
बे-वक़्त पी के होश उड़ाया किये हैं रोज़ ।
_________________हर्ष महाजन ।
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