Thursday, May 17, 2012

आज मुझ से ऐसा कुछ इंतजाम हो गया

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आज मुझ से ऐसा इंतजाम हो गया
अक्षर-अक्षर कलम का तमाम हो गया ।

दिल में उनके प्यार जो था बे-हिसाब
रफ्ता-रफ्ता दर्द उसका नाम हो गया ।

बे-वफ़ा कहूं अगर, उसकी भी हो तौहीन
कुछ इस तरह वो शख्स बे-ईमान हो गया ।

पर क्या करूँ ये दिल उस से रूठता नहीं
जो बना था गुल अब गुलफाम हो गया ।

कहूं इसे तड़प या दर्द-ए-दिल की बात
कुछ भी कहो 'हर्ष' मगर कलाम हो गया ।

_____________हर्ष महाजन ।

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