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आज मुझ से ऐसा इंतजाम हो गया
अक्षर-अक्षर कलम का तमाम हो गया ।
दिल में उनके प्यार जो था बे-हिसाब
रफ्ता-रफ्ता दर्द उसका नाम हो गया ।
बे-वफ़ा कहूं अगर, उसकी भी हो तौहीन
कुछ इस तरह वो शख्स बे-ईमान हो गया ।
पर क्या करूँ ये दिल उस से रूठता नहीं
जो बना था गुल अब गुलफाम हो गया ।
कहूं इसे तड़प या दर्द-ए-दिल की बात
कुछ भी कहो 'हर्ष' मगर कलाम हो गया ।
_____________हर्ष महाजन ।
आज मुझ से ऐसा इंतजाम हो गया
अक्षर-अक्षर कलम का तमाम हो गया ।
दिल में उनके प्यार जो था बे-हिसाब
रफ्ता-रफ्ता दर्द उसका नाम हो गया ।
बे-वफ़ा कहूं अगर, उसकी भी हो तौहीन
कुछ इस तरह वो शख्स बे-ईमान हो गया ।
पर क्या करूँ ये दिल उस से रूठता नहीं
जो बना था गुल अब गुलफाम हो गया ।
कहूं इसे तड़प या दर्द-ए-दिल की बात
कुछ भी कहो 'हर्ष' मगर कलाम हो गया ।
_____________हर्ष महाजन ।
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