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माँ
आज बैठे-बैठे मेरी आँखें यूँ ही भर आयीं
मेरी माँ बे-बाक दिल को छूने चली आयी ।
झंझोड़ दिया मुझको यूँ उसके मातृत्व ने
ज्यूँ आस की यादें उसकी फिर चलीं आयीं ।
याद है उसकी गोद और फिर आँचल उसका
फिर नाक से फिसलती ऐनक चली आयी ।
फेरकर मुँह हमसे यूँ ही चले जाना उसका
विरान आँखें अब यादों में फिर चली आयीं ।
कर जाता है घायल अंदाज़-ए-बेगाना उसका
लहरें आँखों के रस्ते आज फिर चली आयीं ।
इतना हुए गैर के हमें ख़्वाबों से भी दूर किया
फलक से आवाज़ उसकी फिर चली आयी ।
मुझे गिला है खुद से मेरी बेबसी का 'हर्ष'
अंतरात्मा मुझे फिर धिक्कारने चली आयी ।
__________________हर्ष महाजन ।
माँ
आज बैठे-बैठे मेरी आँखें यूँ ही भर आयीं
मेरी माँ बे-बाक दिल को छूने चली आयी ।
झंझोड़ दिया मुझको यूँ उसके मातृत्व ने
ज्यूँ आस की यादें उसकी फिर चलीं आयीं ।
याद है उसकी गोद और फिर आँचल उसका
फिर नाक से फिसलती ऐनक चली आयी ।
फेरकर मुँह हमसे यूँ ही चले जाना उसका
विरान आँखें अब यादों में फिर चली आयीं ।
कर जाता है घायल अंदाज़-ए-बेगाना उसका
लहरें आँखों के रस्ते आज फिर चली आयीं ।
इतना हुए गैर के हमें ख़्वाबों से भी दूर किया
फलक से आवाज़ उसकी फिर चली आयी ।
मुझे गिला है खुद से मेरी बेबसी का 'हर्ष'
अंतरात्मा मुझे फिर धिक्कारने चली आयी ।
__________________हर्ष महाजन ।
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