Monday, May 28, 2012

मेरी माँ बे-बाक दिल को छूने चली आयी ।

..

माँ

आज बैठे-बैठे मेरी आँखें यूँ ही भर आयीं
मेरी माँ बे-बाक दिल को छूने चली आयी ।

झंझोड़ दिया मुझको यूँ उसके मातृत्व ने
ज्यूँ आस की यादें उसकी फिर चलीं आयीं ।

याद है उसकी गोद और फिर आँचल उसका
फिर नाक से फिसलती ऐनक चली आयी ।

फेरकर मुँह हमसे यूँ ही चले जाना उसका
विरान आँखें अब यादों में फिर चली आयीं ।

कर जाता है घायल अंदाज़-ए-बेगाना उसका
लहरें आँखों के रस्ते आज फिर चली आयीं ।

इतना हुए गैर के हमें ख़्वाबों से भी दूर किया
फलक से आवाज़ उसकी फिर चली आयी ।

मुझे गिला है खुद से मेरी बेबसी का 'हर्ष'
अंतरात्मा मुझे फिर धिक्कारने चली आयी ।


__________________हर्ष महाजन ।
 

No comments:

Post a Comment