Sunday, May 27, 2012

ताँका------चोका

कवि-भाव



ताँका------चोका

ताँका

ताँका की विदा सदियों पुरानी जापानी काव्य की काव्य शैली है । इस शैली उसी तरह जाना जाता था जैसे हिन्दुस्तानी राजाओं महाराजाओं ने अपने दरबार में दरबारी या धार्मिक कलाकार गया करते थे । जापान में इसे काफी प्रसिद्धि मिली। हाइकु भी शायद इसी से निकला एक भाव ही है । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
उस वक़्त एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग 7+7 को पूरा करता था । फिर इसी तरह पुराने तांका के 7+7 को आधार बनाकर अगली शृंखला में 5+7+5 का ये क्रम चलता,
फिर इसी के आधार पर अगले मिसरों 7+7 की रचना होती थी । इस काव्य शृंखला की गेम को रेगा भी कहा जाता था । ताँका पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों में ही कही जाती रही है । ये एक बहूत ही अछि विदा है इसमें कोई और रूल नहीं है और कोई भ्रम भी नहीं है ..पहली से आखिरी मिसरे तक इसमें कवि या कहने वाले का मन लगा रहता है इसका अर्थ भरपूर होना चाहिए ...मज़ा भी आना चाहिए ...इसकी श्रखला कितनी भी लम्बी हो सकती है ......आखिरी 7+7 मिसरे को आधार बना कर कहते जाएँ और आगे बढ़ते जाएँ...।

चोका -------

5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में अगर एक ताँका जोड़ दीजिए यानी 7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । तो ये चोका हो जाता है तांका से पहले
लम्बाई की कोई सीमा नहीं है ...

एक छोटा सा ज्ञान

हर्ष महाजन ।

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