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आज उसने मेरी ग़ज़ल को फिर लाईक किया
समझ गया दिन मेरा उसने फिर बर्बाद किया ।
जिसे देख कर कभी अहसास हुआ करता था
कि उसी के दिल ने कभी मुझे था आबाद किया ।
मुसलसल उसके शब्दों से नदारद ही रहीं
वो नज्में जिनको उसके हुनर ने नाबाद किया ।
सहता रहा हूँ मैं सदमे इस तरह के बहूत
मगर इसी तरह मैंने खुद को आज़ाद किया ।
_________________हर्ष महाजन ।
आज उसने मेरी ग़ज़ल को फिर लाईक किया
समझ गया दिन मेरा उसने फिर बर्बाद किया ।
जिसे देख कर कभी अहसास हुआ करता था
कि उसी के दिल ने कभी मुझे था आबाद किया ।
मुसलसल उसके शब्दों से नदारद ही रहीं
वो नज्में जिनको उसके हुनर ने नाबाद किया ।
सहता रहा हूँ मैं सदमे इस तरह के बहूत
मगर इसी तरह मैंने खुद को आज़ाद किया ।
_________________हर्ष महाजन ।
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