क्रितिओं को प्रभावी किस तरह बनाया जाए .....इसमें कई बाते ध्यान रखने योग्य होती हैं ....खासकर ग़ज़लों में ...काफिया दुबारा repeat न हो तो जियादा बेहतर होगा....
जैसे मेरी ऊपर कही गयी ग़ज़ल में ...
मेरे दिल की गहराइयों को न छूना
अकेला हूँ , तन्हाइयों को न छूना |
काफिया गहराइयों /तन्हाइयों में ये शब्द अगले मिसरों में अगर repeat करेंगे तो उस तहरीर की जो गहरायी कम होगी...शब्दों को कभी दुबारा इस्तेमाल न करें जो जियादा बेहतर होगा ..
इसी तरह कविता और नज़्म में भी इसका ध्यान रखा जाए....जब तक ज़रूरी न हो..इसे दुबारा इस्तेमाल न करें...
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
आज हम उर्दू और हिंदी में लिखी नज्मों और कविताओं के बारे में बात करेंगे ...एक छोटा परीची देना चाहूँगा जिस से हम इसके बारे में कुछ जान सके ।
विद्वानों के अनुसार उर्दू में कही गयी ....जो एक सब्जेक्ट पर कही जाए उसे...नज़्म का नाम दिया जाता है .....हिंदी में उसे कविता कहा जाता है ....जहां तक किस्मों का सवाल है ...इनमे भी फरक का अनुभव सामने आता है ......उर्दू में कही जाने वाली नज्मों को ...तीन भागों में बांटा गया है ...इसकी गहरायी में जाने की मैं ज़रुरत नहीं समझता...क्यों के अभी इसकी गहरायी की यहाँ ज़रुरत नहीं है ...और मुझे लगता है यहाँ लोगों को इसमें इंटेरेस्ट भी नहीं है
नज़्म
१..मसनवी
२..मर्सिया
३..कसीदा
१..मसनवी----ये साधारनतया रोमांटिक ..और धार्मिकता में कहा जाता और लिखा जाता है ।
२.. मर्सिया-----ये दुःख और एगोनी को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए कही जाने वाली विधि है ।
३..कसीदा----ये किसी प्रभावी शक्सिअत के बारे में अत्यधिक रूचिकर तरीके से उसकी प्रंशसा करना और शब्दों से कहना ...और लिखा जाता है ।
कविता
कविता क्या है ?
ये हमारे काव्य भाग की एक विधा है ।
कविता ऐसा माध्यम है जिसे हम अपने मन की बात दूसरों तक पहुंचा सकें या सकते हैं ..और अच्छा कवी वही है जो अपनी बात उसी भाव में दुसरे तक बिना समझाए पहुंचा सके ...कविता से कवी की आत्मा का पता चलता है . वह इतनी गहरी चीज़ है की इसका पूरी तरह से समझना नामुमकिन सा है ...
अगर कविता में भावनाएं न हों तो वो सिर्फ तुकबंदी ही कही जायेगी ....सिर्फ कुछ मिसरे लिख दे से वो कविता कभी नहीं बन जाती ..।
आजकल कुछ शब्दों को जोडकर उल्टा सीधा लिखने को ही कविता मान लिया गया है ...ऐसा कतयी नहीं है ...कविता कहना कोई आसान काम नहीं है ....।
अब आते हैं जो हम जाने अनजाने लिख जाते हैं वो क्या होता है....हर इंसान के मन में कवी भावना होती है कोई लिख लेता है कोई लिख नहीं पाता....
इस बारे में बात करने से पहले हमें ये समजना होगा कि...कविता हमारी हिंदी भाग में किस कोष में आती है .....
गद्य--जो रचना छंदोंबद्ध न हो ..मतलब जो गयी न जा सके उसे गध्य कहते हैं ।
पद्य --जो रचना छन्दो में बाँध क्र लिखी गयी हो उसे पद्य कहते हैं ।
और यहाँ हम कविता जो पद्य में आती है उसी कि ही बात करेंगे ।
कविताओं का कुछ स्वरुप उस तरह होता है जिस तरह उर्दू में "नज़्म" का होता है
कविता --जो रचनाएँ कहानी से सम्बंधित होती हैं वो ग़ज़ल नहीं कविता होती है ।
मुक्तक--जो रचनायें स्वतंत्र होती हैं किसी कहानी से सम्बंधित नहीं होती वे मुक्तक कहलाती है ।जो किसी एक बात को चार मिसरों में पूरा करती है ।
कवितायें आजकल अकविता के रूप में भी उभर कर आ रही है ।
कवितायें कहना आसान नहीं है..ये मैंने इस लिए कहा के इनमे शब्द शक्ति का पर्योग होता है ..और जो अछि शब्द शक्ति पर्योग क्र लेता है उसकी कविता श्रेष्ट कविताओं में आती है ...शब्द शक्ति का ये मतलब नहीं के हमें ऐसे शब्द दूंदने हैं जो मुश्कुइल हों? बल्कि ऐसे शब्द से सुसज्जित होनी चाहिए जो सरल और प्रभावी हों ....जियादा मुश्कुइल शब्दों वाली रचना रचनाकार अपनी विद्या का भाखां करने के लिए ही करता है .....अछि कविताओं में उसका शुमार कभी नहीं हो सकता...जो कविता सरल रूप से सबकी समझ में आ जाये वही श्रेष्ट होती है ...
इन उदाहरणों को ध्यान से पढिये....
१. धोबी गधे पर भार लादता है ।
२. इन गधों के देमाग में कुछ भी नहीं बैठता ।
अब ऊपर कहे पहले वाक्य में गधे का अर्थ एक पशु विशेष से है ।
दुसरे वाक्य में 'गधे' से अर्थ 'मूर्ख' लिया गया है क्यों के पशु के दिमाग में कुछ समझने कि योग्यता नहीं होती ।
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शेर किसे कहते हैं एक नज़र दुबारा .......
शेर किसे कहते हैं ?
उत्तर ---शायरी के नियमों में बंधी हुई दो पंक्तियों कि ऎसी काव्य रचना को शेर कहते हैं जिसमें पूरा भाव या विचार व्यक्त कर दिया गया हो | 'शेर' का शाब्दिक अर्थ है --'जानना' अथवा किसी तथ्य से अवगत होना |
इन दो पंक्तियों में कवी अपने पूरे भाव व्यक्त कर देता है ...वो बाव अपने आप में पूर्ण होने चाहिए ..उन पंक्तियों को किसी और पंक्ति कि ज़रुरत नहीं होनी चाहिए ।
जैसे ये मेरी एक ग़ज़ल का मेरा एक शेर -----
"हुई यूँ ग़मों कि ये शाम आखिरी है
पहना दो कफन ये सलाम आखिरी आखिरी है ।"
अब इस शेर में एक सब्जेक्ट को पूरा कर दिया गया है इसमें कुछ और कहने को बाकी नहीं है ....।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
ek baar- Ghazal-Nazm, sher-ashaar. rubaai, qata, ityaadi ka technical fark ....technically kya fark hai jaanna zaroori hota hai.
शेर और अशार का मतलब
किसी एक शेर के बारे में बात हो तो उसे शेर कहते हैं ...एक से जियादा शेरों को अशार कहते हैं ।
इसका पूरंत्या मतलब ये हुआ...के "शेर" शब्द एकवचन है ..और "अशार" शब् बहुवचन है ।
आपका अगला प्रश्न कत्ता और रुबायी ...और इन दोनों में क्या अंतर हैं ?...इसे समझाने की एक कोशिश हम कर के देखते हैं ..जो हमें मालूम है ....बाकी सभी ग्यानी लोगों के विचार भी यहाँ शोबित हों तो अच्छा लगेगा ....
कत्ते और रुबायी दोनों में चार ही मिसरे होते हैं और देखने में दो शेर ही लगते हैं ।
कत्ता :- चार मिसरे
कत्ते में एक मुकम्मल शेर होता है (मतला + शेर ) जो ज़यादातर एक ही ज़मीन पर होते हैं ....
जब शायर ..एक शेर में अपना पूरा ख्याल ज़ाहिर न कर पाए तो वो उस ख्याल को दुसरे शेर से मुकम्मल करता है ।
रुबायी :-....चार मिसरे
जबकि रुबायी में मिसरे तो चार ही होते हैं वो दो शेर नहीं होते वो चार मिसरे ही होते हैं और उसकी rhyming कत्ते की तरह ही होती है रुबायी में एक ही ज़मीन और ख्याल होता है और पूरा जोर चौथे मिसरे में ही होता है और रुबयी मुकम्मल चौथे मिसरे से ही होती है ।
रुबायी में -----
रुबायी में एक और अहेम बात जो ध्यान् देने योग्य है जो चार मिसरे इसमें इस्तेमाल होते हैं इसमें तीसरे मिसरे को छोड़ कर बाकी सब में काफिया और रदीफ़ एक ही rhyming में होते हैं और तीसरा मिसरा आजाद होता है इन बदिशों से मुक्त होता है ।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
यहाँ मैं एक और रूप की बात करूंगा....जो अपने नहीं पूछा ....उर्दू शायरी में एक पार्ट ...
कत्ता और रुबायी के इलावा "फर्द" का भी मैं यहाँ खुलासा कर देना चाहता हूँ >>>
फर्द क्या होता है ......
किसी शायर का ऐसा शेर जो तन्हा हो यानी किसी नज़्म या ग़ज़ल या कसीदे या मसनवी का पार्ट न हो ..उसे फर्द कहते हैं .....इसमें शेर के दोनों मिसरों का हम-काफिया होना ज़रूरी नहीं है ....
जैसे -----
काश ! इतनी तो रौशनी होती
अपने साए से गुफ्तगू करते ।
________________OOOOOO_____________
इसके साथ साथ दोस्तों....लगे हाथ कत्ते का दूसरा रूप ..जो हिंदी में कहे जाने वाले मुक्तक का है .......
कत्ते को ही हिंदी का मुक्तक कहा जाता है ।>>>जो अक्सर हम शायरी में कह दिया करते हैं .....
ये रुबायीँ और कत्ते आम चलते हैं .....
____________________एक मुक्तक
जब देखता हूँ सोचता हूँ दम सा घुटता है
ये मेरे अपने हैं अपनों से dr सा लगता है ।
दुश्मन तो होंगे दुश्मनी भी करेंगे बे-शक ,
न जाने अपनों से दुश्मनी का डर क्यों लगता है ।
हर्ष महाजन
_____________
नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और उस पर जाइए .....
1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12
जैसे मेरी ऊपर कही गयी ग़ज़ल में ...
मेरे दिल की गहराइयों को न छूना
अकेला हूँ , तन्हाइयों को न छूना |
काफिया गहराइयों /तन्हाइयों में ये शब्द अगले मिसरों में अगर repeat करेंगे तो उस तहरीर की जो गहरायी कम होगी...शब्दों को कभी दुबारा इस्तेमाल न करें जो जियादा बेहतर होगा ..
इसी तरह कविता और नज़्म में भी इसका ध्यान रखा जाए....जब तक ज़रूरी न हो..इसे दुबारा इस्तेमाल न करें...
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
आज हम उर्दू और हिंदी में लिखी नज्मों और कविताओं के बारे में बात करेंगे ...एक छोटा परीची देना चाहूँगा जिस से हम इसके बारे में कुछ जान सके ।
विद्वानों के अनुसार उर्दू में कही गयी ....जो एक सब्जेक्ट पर कही जाए उसे...नज़्म का नाम दिया जाता है .....हिंदी में उसे कविता कहा जाता है ....जहां तक किस्मों का सवाल है ...इनमे भी फरक का अनुभव सामने आता है ......उर्दू में कही जाने वाली नज्मों को ...तीन भागों में बांटा गया है ...इसकी गहरायी में जाने की मैं ज़रुरत नहीं समझता...क्यों के अभी इसकी गहरायी की यहाँ ज़रुरत नहीं है ...और मुझे लगता है यहाँ लोगों को इसमें इंटेरेस्ट भी नहीं है
नज़्म
१..मसनवी
२..मर्सिया
३..कसीदा
१..मसनवी----ये साधारनतया रोमांटिक ..और धार्मिकता में कहा जाता और लिखा जाता है ।
२.. मर्सिया-----ये दुःख और एगोनी को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए कही जाने वाली विधि है ।
३..कसीदा----ये किसी प्रभावी शक्सिअत के बारे में अत्यधिक रूचिकर तरीके से उसकी प्रंशसा करना और शब्दों से कहना ...और लिखा जाता है ।
कविता
कविता क्या है ?
ये हमारे काव्य भाग की एक विधा है ।
कविता ऐसा माध्यम है जिसे हम अपने मन की बात दूसरों तक पहुंचा सकें या सकते हैं ..और अच्छा कवी वही है जो अपनी बात उसी भाव में दुसरे तक बिना समझाए पहुंचा सके ...कविता से कवी की आत्मा का पता चलता है . वह इतनी गहरी चीज़ है की इसका पूरी तरह से समझना नामुमकिन सा है ...
अगर कविता में भावनाएं न हों तो वो सिर्फ तुकबंदी ही कही जायेगी ....सिर्फ कुछ मिसरे लिख दे से वो कविता कभी नहीं बन जाती ..।
आजकल कुछ शब्दों को जोडकर उल्टा सीधा लिखने को ही कविता मान लिया गया है ...ऐसा कतयी नहीं है ...कविता कहना कोई आसान काम नहीं है ....।
अब आते हैं जो हम जाने अनजाने लिख जाते हैं वो क्या होता है....हर इंसान के मन में कवी भावना होती है कोई लिख लेता है कोई लिख नहीं पाता....
इस बारे में बात करने से पहले हमें ये समजना होगा कि...कविता हमारी हिंदी भाग में किस कोष में आती है .....
गद्य--जो रचना छंदोंबद्ध न हो ..मतलब जो गयी न जा सके उसे गध्य कहते हैं ।
पद्य --जो रचना छन्दो में बाँध क्र लिखी गयी हो उसे पद्य कहते हैं ।
और यहाँ हम कविता जो पद्य में आती है उसी कि ही बात करेंगे ।
कविताओं का कुछ स्वरुप उस तरह होता है जिस तरह उर्दू में "नज़्म" का होता है
कविता --जो रचनाएँ कहानी से सम्बंधित होती हैं वो ग़ज़ल नहीं कविता होती है ।
मुक्तक--जो रचनायें स्वतंत्र होती हैं किसी कहानी से सम्बंधित नहीं होती वे मुक्तक कहलाती है ।जो किसी एक बात को चार मिसरों में पूरा करती है ।
कवितायें आजकल अकविता के रूप में भी उभर कर आ रही है ।
कवितायें कहना आसान नहीं है..ये मैंने इस लिए कहा के इनमे शब्द शक्ति का पर्योग होता है ..और जो अछि शब्द शक्ति पर्योग क्र लेता है उसकी कविता श्रेष्ट कविताओं में आती है ...शब्द शक्ति का ये मतलब नहीं के हमें ऐसे शब्द दूंदने हैं जो मुश्कुइल हों? बल्कि ऐसे शब्द से सुसज्जित होनी चाहिए जो सरल और प्रभावी हों ....जियादा मुश्कुइल शब्दों वाली रचना रचनाकार अपनी विद्या का भाखां करने के लिए ही करता है .....अछि कविताओं में उसका शुमार कभी नहीं हो सकता...जो कविता सरल रूप से सबकी समझ में आ जाये वही श्रेष्ट होती है ...
इन उदाहरणों को ध्यान से पढिये....
१. धोबी गधे पर भार लादता है ।
२. इन गधों के देमाग में कुछ भी नहीं बैठता ।
अब ऊपर कहे पहले वाक्य में गधे का अर्थ एक पशु विशेष से है ।
दुसरे वाक्य में 'गधे' से अर्थ 'मूर्ख' लिया गया है क्यों के पशु के दिमाग में कुछ समझने कि योग्यता नहीं होती ।
()()()()()()()()()())()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()()(
शेर किसे कहते हैं एक नज़र दुबारा .......
शेर किसे कहते हैं ?
उत्तर ---शायरी के नियमों में बंधी हुई दो पंक्तियों कि ऎसी काव्य रचना को शेर कहते हैं जिसमें पूरा भाव या विचार व्यक्त कर दिया गया हो | 'शेर' का शाब्दिक अर्थ है --'जानना' अथवा किसी तथ्य से अवगत होना |
इन दो पंक्तियों में कवी अपने पूरे भाव व्यक्त कर देता है ...वो बाव अपने आप में पूर्ण होने चाहिए ..उन पंक्तियों को किसी और पंक्ति कि ज़रुरत नहीं होनी चाहिए ।
जैसे ये मेरी एक ग़ज़ल का मेरा एक शेर -----
"हुई यूँ ग़मों कि ये शाम आखिरी है
पहना दो कफन ये सलाम आखिरी आखिरी है ।"
अब इस शेर में एक सब्जेक्ट को पूरा कर दिया गया है इसमें कुछ और कहने को बाकी नहीं है ....।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
ek baar- Ghazal-Nazm, sher-ashaar. rubaai, qata, ityaadi ka technical fark ....technically kya fark hai jaanna zaroori hota hai.
शेर और अशार का मतलब
किसी एक शेर के बारे में बात हो तो उसे शेर कहते हैं ...एक से जियादा शेरों को अशार कहते हैं ।
इसका पूरंत्या मतलब ये हुआ...के "शेर" शब्द एकवचन है ..और "अशार" शब् बहुवचन है ।
आपका अगला प्रश्न कत्ता और रुबायी ...और इन दोनों में क्या अंतर हैं ?...इसे समझाने की एक कोशिश हम कर के देखते हैं ..जो हमें मालूम है ....बाकी सभी ग्यानी लोगों के विचार भी यहाँ शोबित हों तो अच्छा लगेगा ....
कत्ते और रुबायी दोनों में चार ही मिसरे होते हैं और देखने में दो शेर ही लगते हैं ।
कत्ता :- चार मिसरे
कत्ते में एक मुकम्मल शेर होता है (मतला + शेर ) जो ज़यादातर एक ही ज़मीन पर होते हैं ....
जब शायर ..एक शेर में अपना पूरा ख्याल ज़ाहिर न कर पाए तो वो उस ख्याल को दुसरे शेर से मुकम्मल करता है ।
रुबायी :-....चार मिसरे
जबकि रुबायी में मिसरे तो चार ही होते हैं वो दो शेर नहीं होते वो चार मिसरे ही होते हैं और उसकी rhyming कत्ते की तरह ही होती है रुबायी में एक ही ज़मीन और ख्याल होता है और पूरा जोर चौथे मिसरे में ही होता है और रुबयी मुकम्मल चौथे मिसरे से ही होती है ।
रुबायी में -----
रुबायी में एक और अहेम बात जो ध्यान् देने योग्य है जो चार मिसरे इसमें इस्तेमाल होते हैं इसमें तीसरे मिसरे को छोड़ कर बाकी सब में काफिया और रदीफ़ एक ही rhyming में होते हैं और तीसरा मिसरा आजाद होता है इन बदिशों से मुक्त होता है ।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
यहाँ मैं एक और रूप की बात करूंगा....जो अपने नहीं पूछा ....उर्दू शायरी में एक पार्ट ...
कत्ता और रुबायी के इलावा "फर्द" का भी मैं यहाँ खुलासा कर देना चाहता हूँ >>>
फर्द क्या होता है ......
किसी शायर का ऐसा शेर जो तन्हा हो यानी किसी नज़्म या ग़ज़ल या कसीदे या मसनवी का पार्ट न हो ..उसे फर्द कहते हैं .....इसमें शेर के दोनों मिसरों का हम-काफिया होना ज़रूरी नहीं है ....
जैसे -----
काश ! इतनी तो रौशनी होती
अपने साए से गुफ्तगू करते ।
________________OOOOOO_____________
इसके साथ साथ दोस्तों....लगे हाथ कत्ते का दूसरा रूप ..जो हिंदी में कहे जाने वाले मुक्तक का है .......
कत्ते को ही हिंदी का मुक्तक कहा जाता है ।>>>जो अक्सर हम शायरी में कह दिया करते हैं .....
ये रुबायीँ और कत्ते आम चलते हैं .....
____________________एक मुक्तक
जब देखता हूँ सोचता हूँ दम सा घुटता है
ये मेरे अपने हैं अपनों से dr सा लगता है ।
दुश्मन तो होंगे दुश्मनी भी करेंगे बे-शक ,
न जाने अपनों से दुश्मनी का डर क्यों लगता है ।
हर्ष महाजन
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नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और उस पर जाइए .....
1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12
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