इस बे-वफ़ा शहर में अब हमदर्द भी खूब निकले,
बे-दर्द भी खूब निकले कमज़र्द भी खूब निकले ।
किसी को देके ज़ख्म बे-वफायी यूँ चली आएगी
खबर नहीं थी मुझको वो मेरे ही महबूब निकले ।
_______________हर्ष महाजन
बे-दर्द भी खूब निकले कमज़र्द भी खूब निकले ।
किसी को देके ज़ख्म बे-वफायी यूँ चली आएगी
खबर नहीं थी मुझको वो मेरे ही महबूब निकले ।
_______________हर्ष महाजन
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