..
लेने उनसे मैं चला आज की शाम उधार
रोम-रोम था डूब रहा चारों और श्रृंगार ।
चारों और श्रृंगार, घटायें काली छायीं ,
रस में डूबा प्यार बदरिया खूब थी आयी,
कहे 'हर्ष' अब करो दिलों के लेने देने,
ढल जायेगी प्रीत पड़ेगा पतझड़ लेने ।
______________हर्ष महाजन
लेने उनसे मैं चला आज की शाम उधार
रोम-रोम था डूब रहा चारों और श्रृंगार ।
चारों और श्रृंगार, घटायें काली छायीं ,
रस में डूबा प्यार बदरिया खूब थी आयी,
कहे 'हर्ष' अब करो दिलों के लेने देने,
ढल जायेगी प्रीत पड़ेगा पतझड़ लेने ।
______________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment