पतनी अपनी जात की, एकहू तरकश बाण
मियाँ जी के अगल-बगल, तनी जु तीर-कमान ।
तनी जु तीर-कमान, यु सौतन कैसे आवे
पति होए बेइमान, तो घर कु सर पे उठावे ।
कहें 'हर्ष' कविराय , घरां की खाओ चटनी
सौतन की न सोच, जब हो घर में जु पतनी ।
____________________हर्ष महाजन
मियाँ जी के अगल-बगल, तनी जु तीर-कमान ।
तनी जु तीर-कमान, यु सौतन कैसे आवे
पति होए बेइमान, तो घर कु सर पे उठावे ।
कहें 'हर्ष' कविराय , घरां की खाओ चटनी
सौतन की न सोच, जब हो घर में जु पतनी ।
____________________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment