कभी हक की रोशनी में कभी हक के फासलों में,
वो ज़िन्दगी में मेरी जाने कहाँ-कहाँ से गुज़रा ।
कभी दिल की धडकनों में कभी अश्क के सफ़र में
वो हर भंवर में शामिल मैं जहां-जहां से गुज़रा ।
मुझे कुछ पता नहीं था, ये इश्क क्या बला थी,
वो जिस गली से गुज़रा मैं वहाँ-वहाँ से गुज़रा ।
जब इश्क में था ये दिल, इक बे-रुखी से गुज़रा
दिल अश्क-बार लेकर फिर इम्तिहाँ से गुज़रा ।
मैं खुद भी तो हैराँ हूँ , मैं किस डगर से गुज़रा,
मुझे इल्म ही नहीं, गम के कारवाँ से गुज़रा ।
________________हर्ष महाजन
वो ज़िन्दगी में मेरी जाने कहाँ-कहाँ से गुज़रा ।
कभी दिल की धडकनों में कभी अश्क के सफ़र में
वो हर भंवर में शामिल मैं जहां-जहां से गुज़रा ।
मुझे कुछ पता नहीं था, ये इश्क क्या बला थी,
वो जिस गली से गुज़रा मैं वहाँ-वहाँ से गुज़रा ।
जब इश्क में था ये दिल, इक बे-रुखी से गुज़रा
दिल अश्क-बार लेकर फिर इम्तिहाँ से गुज़रा ।
मैं खुद भी तो हैराँ हूँ , मैं किस डगर से गुज़रा,
मुझे इल्म ही नहीं, गम के कारवाँ से गुज़रा ।
________________हर्ष महाजन
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