वो तलख मोहब्बत की गलियाँ, मुझको जाने क्यूँ रोके हैं,
फिर सख्त डाल वो अम्बिया की, जहां झूले वो क्यूँ टोके है ।
फूलों की तरह मैं बिखरा यहाँ जिस बाग़ का कोई माली नहीं,
मैं महका-महका फिरता यहाँ, खुशबू उसकी क्यूँ रोके हैं ।
गम में मेरा हमदर्द वो था ज़ुल्मत में भी था गमख्वार वही,
वो था भी कमाल-ए-इश्क मेरा, फिर गम जाने क्यूँ झोंके है ।
वो था भी फ़िदा मेरी जुल्फों पे जो अब तक वादा निभावे है,
तू फलक पे है या गर्दिश में आ जनम-जनम के मौके हैं ।
मेरे सबर का दामन उजड़ गया, फ़रियाद भी मेरी उजड़ गयी,
अब 'हर्षा' के अरमानों में नया इक मौत का फतवा ठोके है ।
___________________________हर्ष महाजन
फिर सख्त डाल वो अम्बिया की, जहां झूले वो क्यूँ टोके है ।
फूलों की तरह मैं बिखरा यहाँ जिस बाग़ का कोई माली नहीं,
मैं महका-महका फिरता यहाँ, खुशबू उसकी क्यूँ रोके हैं ।
गम में मेरा हमदर्द वो था ज़ुल्मत में भी था गमख्वार वही,
वो था भी कमाल-ए-इश्क मेरा, फिर गम जाने क्यूँ झोंके है ।
वो था भी फ़िदा मेरी जुल्फों पे जो अब तक वादा निभावे है,
तू फलक पे है या गर्दिश में आ जनम-जनम के मौके हैं ।
मेरे सबर का दामन उजड़ गया, फ़रियाद भी मेरी उजड़ गयी,
अब 'हर्षा' के अरमानों में नया इक मौत का फतवा ठोके है ।
___________________________हर्ष महाजन
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