कितना अदब था उसको जब हम बाग़ में जाया करते थे
सुबहो शाम ले हाथ में हाथ फिर छोले खाया करते थे ।
न थी परवाह कोई पैसों की न चाह ही बताया करते थे
जो होता अपने पास दोनों इक दूजे पर जाया करते थे ।
न थी कोई फिक्र महंगायी की जुल्फों पे न खर्चा करते थे
दिल फ़ेंक महोब्बत करते थे बे-बाक फिर चर्चा करते थे ।
हो जाती थी तकरार कभी पल-पल तडपाया करते थे,
इंतज़ार सुबहो की करते करते सब भूल जाया करते थे ।
अब देख जेब को डरते हैं अखबार को रोज़ ही पड़ते हैं
हर चीज़ के भाव बदलते ही, तेवर बीवी के बदलते हैं ।
अब डर है सावन आते आते उसका रुख अब क्या होगा,
वादा जो किया था कपड़ों का न होगा पूरा तो क्या होगा ।
_________________________ह र्ष महाजन
सुबहो शाम ले हाथ में हाथ फिर छोले खाया करते थे ।
न थी परवाह कोई पैसों की न चाह ही बताया करते थे
जो होता अपने पास दोनों इक दूजे पर जाया करते थे ।
न थी कोई फिक्र महंगायी की जुल्फों पे न खर्चा करते थे
दिल फ़ेंक महोब्बत करते थे बे-बाक फिर चर्चा करते थे ।
हो जाती थी तकरार कभी पल-पल तडपाया करते थे,
इंतज़ार सुबहो की करते करते सब भूल जाया करते थे ।
अब देख जेब को डरते हैं अखबार को रोज़ ही पड़ते हैं
हर चीज़ के भाव बदलते ही, तेवर बीवी के बदलते हैं ।
अब डर है सावन आते आते उसका रुख अब क्या होगा,
वादा जो किया था कपड़ों का न होगा पूरा तो क्या होगा ।
_________________________ह
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