Saturday, March 10, 2012

मुझ से न ले मेरे कर्मों का हिसाब 'मौला मैं दोज़ख का ही वासी हूँ

किस तरह लचर हो जाता है सिलसिला जहां भी शक्ति का वितरण हो जाता है । हर किसी को चाहे वो इंसान हो जलचर हो, नभचर हो, निशाचर हो, थलचर हो या ये सृष्टि के विद्यमान स्रोतों में इस्तेमाल होने वाली शक्ति हो .....वहाँ कहीं न कहीं गलत इस्तेमाल होने की संभावना हो ही जाती है ...ऐसा कई बार प्रतीत होने भी लगता है .... उन शक्तियों को प्रभावित भी किया जा सकता है ...पूजा पाठ से या किसी ओउर माध्यम से......इसी पर मेरा ये शेर आधारित है मुलायजा फरमाइए ....
 
 
मुझ से न ले मेरे कर्मों का हिसाब 'मौला मैं दोज़ख का ही वासी हूँ
मैं जानता हूँ तेरी महफ़िल में तकदीर किस तरह लिखी जाती है ।

_____________________________हर्ष महाजन

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